Thursday 29 December 2011

उजालों की कशिश वो समझती है

उजालों की कशिश वो समझती है

उजालों की कशिश वो समझती है
ज़िन्दगी जो अंधेरों में भटकती है !

हमसफ़र ना कोई ,ज़िन्दगी चलती है
सांसो में कमी उसकी हर पल खलती है !

काँटों पे चैन से सोती है ज़िन्दगी
शोलों पे हंसके चलती है ज़िन्दगी

कौन कहता ज़िन्दगी मरती है
मरके भी ज़िन्दगी याद रहती है!

रोशनी से तलबगार हर कोई यहाँ
अँधेरी रात भी बहुत कुछ कहती है

तुफानो से मुस्कराके ज़िन्दगी जो लडती है
अंधेरों में बन उम्मीद ज़िन्दगी वो जलती है !

प्रीत बन प्रियतम से प्रिय जो बिछदती है
प्यार की हर रीत के गीत वो समझती है !

विरह में प्यार के प्रीत जो भटकती है
योगी प्यार की रीत वो समझती है !

ज़िन्दगी जो अंधेरों से गुजरती है !
उजालों की कशिश वो समझती है !

यह रचना क्यों ? दूरियां भी जीना सिखाती हैं मजबूरियां लड़ना सिखाती हैं और जब मामला प्यार का हो फिर क्या कहने ?
अरविन्द योगी

Monday 26 September 2011

मन भटक जाता है

मन भटक जाता है



मै हर गली हर चौखट जाता हूँ

प्यार की हवा में बहक जाता हूँ

चाय की गली में ठहर जाता हूँ

पान में डूबा पूरा शहर पाता हूँ

जाने क्यों बनारस की गलियों में

मन भटक जाता है !-------------



यहाँ हर पल होता हवन है

सबमे भक्ति है बड़ा लगन है

हर गली में मंदिर है भवन है

यहाँ धन्य हर जनम ,मुक्ति हर मरण है

भोलेनाथ का शरण है हर मन मगन है

जाने क्यों मन चंचल है बनारस की गलियों में

मन भटक जाता है !---------------



कचौड़ी गली, खोवा गली, श्रींगार गली, विश्वनाथ गली

मस्जिद गली मंदिर गली , राम गली हनुमान गली

जाने कितनी गली , गलियों में गली

दिल को लगती भली यहाँ जीवन चली

जीवन की गली शिव की गली

गलियों का शहर मंदिरों का नगर

मन हर पल यहाँ ठहर जाता है

जाने क्यों बनारस की गलियों में

मन भटक जाता है !------------------



भंग का लहर पहर दो पहर

भाव का शहर शिव का नगर

शान का शहर सम्मान का नगर

स्वाभिमान का शहर शिव का घर

यहाँ हर गली में इन्सान का घर

भगवान का घर बनारस शहर

मन मचल जाता है भाव ठहर जाता है

जाने क्यों बनारस की गलियों में

मन भटक जाता है !------------------



घाटों का घाट शिव का बाँट

राज घाट, राम घाट , हरिश्चंद्र ,मर्निकनिका घाट

प्रह्लाद घाट हनुमान घाट ,त्रिलोचन घाट केदार घाट

सबका करता उद्धार घाट, संसार का है घोसला घाट

बनारस का हर घाट है हर जीवन की बाँट

घाटों पे ठहर जाता है नया जनम पाता है

जाने क्यों बनारस की गलियों में

मन भटक जाता है !------------------



यह कविता क्यों ? बनारस गलियों का शहर है मंदिरों का नगर है शिव का घर है जीवन का घाट है उस बनारस की क्या बात है जहाँ जलधर भोलेनाथ सबका कल्याण करते है मन का संताप हरते है ! जय विश्वनाथ भोलेनाथ रसारस बनारस हे मन बना रहे बनारस अरविन्द योगी

Thursday 1 September 2011

किसी की आँखों मे मोहब्बत का सितारा होगा

किसी की आँखों मे मोहब्बत का सितारा होगा

किसी की आँखों मे मोहब्बत का सितारा होगा
एक दिन आएगा कि कोई शक्स हमारा होगा
कोई जहाँ मेरे लिए मोती भरी सीपियाँ चुनता होगा
वो किसी और दुनिया का किनारा होगा

काम मुश्किल है मगर जीत ही लूगाँ किसी दिल को
मेरे खुदा का अगर ज़रा भी सहारा होगा
किसी के होने पर मेरी साँसे चलेगीं
कोई तो होगा जिसके बिना ना मेरा गुज़ारा होगा

देखो ये अचानक ऊजाला हो चला,
दिल कहता है कि शायद किसी ने धीमे से मेरा नाम पुकारा होगा
और यहाँ देखो पानी मे चलता एक अन्जान साया,
शायद किसी ने दूसरे किनारे पर अपना पैर उतारा होगा

कौन रो रहा है रात के सन्नाटे मे
शायद मेरे जैसा तन्हाई का कोई मारा होगा
अब तो बस उसी किसी एक का इन्तज़ार है,
किसी और का ख्याल ना दिल को ग़वारा होगा

ऐ ज़िन्दगी! अब के ना शामिल करना मेरा नाम
योगी ग़र ये खेल ही दोबारा होगा !

यह कविता क्यों मोहब्बत एक एहसास है हवा का झोंका है फूलों की खुशबू है मन का संगीत है एक निस्वार्थ प्रीत है रिश्तों की अजीब सी अनकही सी रीत है मोहब्बत कोई शब्द नहीं अर्थ है जीवन का !
अरविन्द योगी

Saturday 23 July 2011

बड़ा ही मनभावन है बनारस का सावन

बारिश के बूंदों में डूबा मन
चन्दन से शीतल हुआ तन
शिवमय हो बहती चंचल पवन
भावनामय हो जलती हवन
धन्य हो जाये जहाँ जीवन
धन्य हो जाये जहाँ मरण
आज सावन आया है
उस बनाराश की शरण !

बारिश की बूंदों में डूबता कण-कण
योगी बन काशी में घूमता तन-मन
गंगा की लहर भाव की भंवर
उगते सूरज का शहर ,मंदिरों का नगर
आज बादलों की जद में है, सावन की हद में है
जहाँ सूरज भी डूबता है चाँद भी उगता है
ह्रदय से हँसता हर मन दिखता है
जहाँ हर भाव दिखता है बिकता है
भावना की हर रात में भक्ति की हर बात में
सावन में जब बनारस डूबता है !
जिसे सृष्टि का कण कण पूजता है
ऐसा है मन भावन बनारस का सावन !

पंक्ति में खड़ी भक्ति है जिसमे शिव शक्ति है
मस्ती में डूबी हर बस्ती है भावना भी सस्ती है
चली फिर आज सावन की कश्ती है
सस्ती से सस्ती है मस्ती से मस्ती है
शिव को समर्पित सावन की भक्ति है
शक्ति को अर्पित सावन की मस्ती है
आज उगते सूरज के शहर में
आज सावन की मस्ती है !

यह कविता क्यों ? बड़ा ही मनभावन है बनारस का सावन जहाँ कण कण शिवमय हो जाता है रसमय हो जाता है शाशिमय हो जाता है सब रसमय हो जाता है जब बनारस में सावन आता है !
अरविन्द योगी

हे प्रभो तुम कहाँ हो ?

हे प्रभो ! तुम कहाँ हो ?
जहाँ देखो तुम वहां हो
मन में हो तन में हो
सृष्टि के कण कण में हो
मै अकिंचन जित खोजा
तित पाया तुमको
रोम रोम में धरा व्योम में
बेचारा चंचल सा मन
खोजता रहा हर जनम
करता रहा हर करम
तुझे पाने की तुझमे सामने की
पर तुम मेरे अंतर्मन में हो
सृष्टि के जन-जन में हो
पर बांवरा सा मेरा मन
तेरा अस्तित्व अनंत
खोजता है योगी सोचता है
तुम कहाँ हो? तुम कहाँ हो?
जहाँ तक दृष्टि पड़ती
तुम वहां हो फिर भी
हे प्रभो तुम कहाँ हो ?

यह कविता क्यों ? चंचल मन अंतर्मन में कल्पनाओं के पंख लगाकर अनंत सृष्टि में कौतुक दृष्टि से जिस ईश्वर की खोज यात्रा करता है सृष्टि के कण कण में है जीवन में है पर मन तो मन है न पूछ ही बैठता है की आखिर दुनिया की नाव चलने वाले नाविक प्रभो! तुम कहाँ हो ?
अरविन्द योगी

Saturday 18 June 2011

श्रद्धा के आंसू

श्रद्धा के आंसू

श्रद्धा के आंसू बन गए जिग्यांसु
पवित्र थें विचित्र थें
अनंत बहाव था लगाव था
अनोखी धार बन प्यार
बरस रही थी तड़प रही थी
एहसासों के बादल
बन गएँ आँखों के काजल
भावना पवित्र थी
ज़िन्दगी सचित्र थी
अर्पण नहीं समर्पण की बेला थी!
ईस्वर की सब खेला थी
कल आज और कल
ज़िन्दगी का हर पल
जीने की अब बारी थी
ह्रदय से निकली वो प्रायश्चित हमारी थी
जीकर देखा श्रद्धा के आंसू को
कितने पवित्र कितने सच्चे
दिल से भोले बड़े अच्छे
बरस पड़ते थे एहसासों में घिरकर
उमड़ उमड़ कर घुमड़ घुमड़ कर
प्यार में अधिकार में
वो श्रद्धा के आंसू थे !
बह जाये तो भी उनके ना बहे तो भी उनके
कितनी ज़िन्दगी छिपी थी उन आंसुओं में
प्यार की भावना बही थी उन आंसुओं में
श्रद्धा के आंसू
हैवान को भगवान और
सैतान को इन्सान बनाती है
गर बरस जाये ह्रदय से
तो इन्सान को इन्सान बनाती है
योगी मन यही तो प्रायश्चित कहलाती है
जो श्रद्धा के आंसू बन ज़िन्दगी बहाती है!

यह कविता क्यों ? ह्रदय की वेदनाओं से पवित्र हो प्रायश्चित में जो आंसू मन के आँखों से निकलते हैं वो इन्सान को उसके इन्सान होने का एहसास दिला देते है और एक नई राह दिखाते है ! अरविन्द योगी

Wednesday 1 June 2011

जिसे दुनिया भुला ना पायेगी !

जिसे दुनिया भुला ना पायेगी !

दौलत से तू प्यार न कर ये साथ ना तेरे जाएगी
प्यार करे तो इन्सान से कर जिसे दुनिया भुला न पायेगी !

स्वार्थ में अँधा हो तुने कितनो को सुलाया है
महल बनके अपनों के कितनो के घर जलाया है

मजे में अपने मगन रहा सुख दुःख ना औरो का जाना
इंसानों के कर्म है क्या ये तुने ना कभी पहचाना है

दुनिया को दुःख देने वाले मौत तुझे भी आएगी
प्यार करे तो इन्सान से कर जिसे दुनिया भुला न पायेगी !
जिनको तू कहता अपना-अपना,साथ ना वो तेरा देंगे
छीनके तेरी दौलत सारी दो ही गज कफ़न देंगे

तेरे बनाये महलो में तुझको ना ठहराएंगे
मौत तेरी आते ही तुझको जल्द से जल्द जलाएंगे

हँसता है तू जिन आँखों में बस दो पल को आंसू बहायेंगे
प्यार करे तो इन्सान से कर जिसे दुनिया भुला ना पायेगी !
यह कविता क्यों ? इन्सान का कर्म और धर्म सिर्फ प्यार पाना और देना है बस यही एक नेमत है जो जाने के बाद भी याद आती है बाकि सब माटी शरीर के साथ ख़त्म हो जाता है ! अरविन्द योगी १२/०५/२०११

Monday 18 April 2011

अन्ना हजारे कौन है ?

मेरा भारत प्यारा भारत

अन्ना हजारे कौन है ?
१ - ये वही अन्ना हजारे है जिन्होंने ठाकरे साहब के उर में सुर मिलाया यू पी और बिहारी मुंबई को बर्बाद कर रहे है !
२ - ये वही अन्ना हजारे है जिन्होंने वीडियो लाइव टेलीकास्ट लोकपाल बिल का होने का विरोध करते है !
३ - ये वही अन्ना जी जिन्होंने एक सपना देखा है एक महान नेता बनने का
बहुत सी ऐसी बाते है जिन्हें बताते हुए शर्म आती है कि भारत इए लोगो को आज भी अपना उद्धारक मानता है !
अन्ना हजारे को एक बहरूपिया चोर गिरगिट कुत्सित मनोविकारी विस्वह्घती और न जाने कितने ही शब्द कम पड़ जायेंगे
आइये सोचिये समझिये कुछ कीजिये नहीं तो ऐसे चोर हमारे भारत को बेच देंगे !
गर मुझे अन्ना को चोर कहने से कोई भी सजा मिली तो स्वागत है कि एक गंदगी को अ करने के लिए मेरा जीवन समर्पित हो जायेगा क्योकि ये जीवन तो मेरे मातृभूमि का ऋणी है देश के इतिहाश में ऐसे असामाजिक विस्वाहघती चोर नेताओं को चप्पलों कि माला पहननी चाहिए
मेरे प्रिय एवम आदरनीय श्री प्रवीण आर्य जी कुछ तो कीजिये इस चोर का नहीं तो देश का इतिहास आपसे हमेसा पूछता रहेगा कि आपकी कलम कहाँ सो गई थी आप खुद को माफ़ नहीं कर सकेंगे ! जय भारत जय भारतीय

जीवन जितना तुमसे प्यार

जीवन जितना तुमसे प्यार
लाये उतना दर्दे बयार
जीवन कैसा एक व्यापार
यादों का सूना संसार
रिश्तों के ये सारे दांव
मिट जाते माटी के भाव
रह जाते बस दिल में घाव
दिग जाते अब मेरे पांव
जीवन जितना तुमसे प्यार !
कहाँ गए ममता के छाँव
भूल गए बचपन के भाव
मिलते गये जब जीवन के दांव
बढ़ते गए बस मेरे पांव
हर पल जीवन एक लगाव
पर खुद से कितना अलगाव
जीवन जितना तुमे प्यार !
आई जवानी बिता बचपन
जीवन खोता अपना तन मन
जब जीवन देखे बसंत पचपन
याद आये बस बचपन बचपन
जीवन जितना तुमे प्यार !
हाय रे जीवन हाय रे जीवन
जीवन तुझे प्यार किया
तेरा सबकुछ तुहे वार दिया
बोलो क्या मैंने पाप किया
पाप किया अपराध किया
जीवन जितना तुमे प्यार !
जीवन बहता एक बहाव
बस देता यादों के घाव
मौत है इसका एक पड़ाव
जीवन कितना तुझसे लगाव
छोड़ चूका मै दर्द के गाँव
यादों से है जन्मो का लगाव
जीवन जितना तुमे प्यार !
पल पल घटता जीवन का भाव
मौत पसारे चुपके चुपके अपने पांव
धरे रह गए सारे दांव
योगी करता शब्द व्यापार
मिथ्या जीवन मिथ्या संसार
मिट जाते सब माटी के भाव
हर रे जीवन हाय रे जीवन
कर ले जीवनदाता से प्यार
जो है सबका आधार है
जीवन तुमसे कितना प्यार
यह कविता क्यों ?
जीवन को कितना भी प्यार कीजिये लेकिन अंत में कुछ ज्यादा नहीं थोडा सा ही कम पड़ जाता है !
अरविन्द योगी १८/०४/२०११

ये है दिल्ली मेरी जान

ये है दिल्ली मेरी जान

कभी ना घटती जिसकी शान
हर पल बढती इसकी मान
हर जीवन में एक नई जान
हर दिन एक नई पहचान
ये है दिल्ली मेरी जान !
यहाँ दौड़ती जिंदगी सर पटकती गंदगी
ट्रैफिक से दिल्लगी करते लोग
वक़्त का समुचित सदुपयोग
यहाँ मिलता है भरपूर प्यार
जानवर हो या इन्सान
ये है दिल्ली मेरी जान !
जमीन से आसमान तक
झोपडी से मकान तक
चाय से पकवान तक
शैतान से भगवान तक
यहाँ सब मिलते हैं महान
ये है दिल्ली मेरी जान !
यहाँ खुली किताब बंद ज़िन्दगी
रंगीन अपने बेरंग आँखे
कोई आये कोई जाये
मिलती सबको कुछ सौगातें
इसकी निराली सब बातें
हर बातो में है जान
ये है दिल्ली मेरी जान !
रात को दुल्हन सुबह को राजा
दिन बढ़ते बन जाये शहजादा
हम को बनता फिर चाँद आधा
पूरा करता अपना हर वादा
हर वादे में दिल की शान
ये है दिल्ली मेरी जान !
खुशियों की बारिश सपनों की शाजिश
देश का दिल है दिल
सबसे प्यारी प्रीत है
हर पल बजती संगीत है
हर सुबह एक नई पहचान
एक नई जान एक नई शान
ये है दिल्ली मेरी जान
यह कविता क्यों ? देश के दिल दिल्ली में दिल से जियें दिल्ली का दिल बड़ा व्यावसायिक हो चूका है अमझे की दिल्ली का नाम दिल्ली क्यों है ? प्यार से जिए औरों को भी जीने दें !
अरविन्द योगी १९/०४/२०११

Thursday 14 April 2011

कुछ तुम कहो, कुछ हम कहें

दो घूँट आंसू का

तन्हाई के साये में
ख़ामोशी कि नदी बहती है
दिल उसकी यादों में सूखे पत्तो पर
जो विरह व्यथा लिखती है
खामोश चांदनी रात में
उसकी यादें शबनम बन
आँखों कि मुडेरो से टपकती है
और एक नदी बह पड़ती है
उसकी यादों कि कोख से
जब हवाएं नदी में नहाने के लिए आती है
शशि को अर्घ देती स्पर्श करती
तो एक घडी नदी के किनारे
वो पत्थर पर बैठ जाती हैं
उस समय नदी कि छाती से
चाँद कि किरणे कुछ कहती है
तब उसकी यादों में
यह खामोश नदी बहती है
आसमान में चमकते प्यारे तारे
इस नदी में खेलते है
बादल भी तैरते है
सितारे भी उतरते है
पंक्षी भी पानी पीते है
और शशि का योगी अरविन्द
अपना कमंडल भरने को जब
नदी के किनारे आता है
दो घूँट आंसू का
आँखों में रमाता है
और उसकी यादो में
ख़ामोशी कि नदी में
कुछ पल को डूब जाता है
जब बाहर निकल कर आता है
तो आँखों के सामने
वही ख़ामोशी की नदी बहती है
उसकी यादों में जब पर्वत और घाटियाँ
गुजरे प्यार की गाथा गुनगुनाते है
तो खामोश यादो का दिल
इश्क बन धड़क जाता है
और योगी के होंठो पर सिसकती
गुजरे लम्हों की गाथा
खामोश नदी में
प्रेम का तूफ़ान लता है उफान लाता है
योगी कह उठता है !
तुने ही हंसकर ज़िन्दगी की नदी पर
ख्वाबों का पुल बनाया था
और मुझे लाकर मझधार पर
दूसरा किनारा दिखाया था
और खुद को नदी की आगोश में समाया था
तब से उसकी याद में
यह ख़ामोशी की नदी बहती है
और योगी की छाती में
गुजरा इश्क धडकता है
विरह रगों में बसता है
तब नदी की ख़ामोशी में डूबी
उसकी शाशि का भी दिल धडकता है
फिर फिर उसकी यादो में ख़ामोशी की नदी बहती है
जो यादो के शाए में
कभी बहती कभी सूखती है
पर वो इतना जानती है
वह भी योगी के इश्क में
खामोश नदी सी बहती है
खामोश होकर भी
गुजरे वक़्त की गाथा कहती है
योगी शशि की आगोश में
हर रोज नहाता है
और दो घूट आंशू का
आँखों में रमाता है
और उसकी यादो में
ख़ामोशी की नदी में
हमेशा को डूब जाता है !

यह कविता क्यों ? दो घूट लेकर आंशू का जीवन के दो पहलू है ख़ुशी से मुस्कराओ या गम से मुस्कराओ मुस्कराना तो ज़िन्दगी है जो मुस्कान को नहीं जानता वो अपनी या ज़िन्दगी की पहचान को नहीं जानता अरविन्द योगी * यह कविता सभी प्रेमियों को सहृदय समर्पित १४/०४/२०११

Tuesday 12 April 2011

कुत्ता और आदमी

कुत्ता और आदमी
एक आदमी रोटी बनाता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक आदमी रोटी से खेलता है
एक आदमी रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी सेकता है
और एक आदमी रोटी से तमाम उम्र झेलता है !
पर यही रोटी
इन्सान को भगवान बनती है
यही रोटी शैतान को इन्सान बनाती है
यही रोटी इन्सान को हैवान बनाती है
पूरी सृष्टि रोटी में समायी है
कन्हैया को भी नाच नचाई है
पर रोटी में बसता
दिल अपना और प्रीत पराई है
रोटी से तो कुत्तो में भी लड़ाई है
पर वफ़ादारी उसने दिखाई है
और आदमी ने हमेशा पीठ दिखाई है
अब आदमी और कुत्ता में
सम्मान की लड़ाई है
योगी नजर ने हमेशा
कुत्ते की जीत पाई है
कुत्ते और आदमी में
अभी बहुत दूर है आदमी
कुत्तों की वफ़ादारी से ईमानदारी से !
ईमानदार नहीं तो कुत्तों सा
वफादार बनिए इन्सान बनिये
शर्म हो तो इन कुत्तों से कुछ सीखिए !

यह कविता क्यों ? आदमी वह है जो खुद सोचे की वह कहाँ है ? रोटी खाने और खिलाने के फर्क को समझिये !
यह कविता भारतीय कूटनीति राजनीती के पुरोधा अन्ना हजारे जी को ह्रदय से समर्पित अरविन्द योगी १२/०४/२०११

Monday 11 April 2011

मुझको तनहा छोड़ गए तुम

मुझको तनहा छोड़ गए तुम
यादो का रिश्ता जोड़ गए तुम
मेरे हमदम मेरे साथी
दिल जलता ज्यों दिया और बाती
देखो छूट गए सब राह के साथी
छाई जीवन बगिया में एक खामोश उदासी
कोई करे दूर उबासी मन बनता जाये सन्यासी

निःशब्द चुपचाप

निःशब्द चुपचाप

एक आवाज आती है
सन्नाटे से निःशब्द चुपचाप
शायद कुछ कहना चाहती है
चांदनी रात चुपचाप
वक़्त गुजरता जाये चुपचाप
क्या कर सकते हो आप
सुबह से शाम
और शाम से फिर रात आये चुपचाप
दर्द की काली घटा
छा जाये चुपचाप
आसमान शबनम टपकाए
अवनि से चुपचाप
दर्द की तन्हाई में
कटती हर रात चुपचाप
सुनहला सुबह लाये
नए स्वप्न अपने साथ
चले योगी जिंदगी के साथ
चले जैसे ज़िन्दगी चुपचाप !
यह कविता क्यों ? सन्नाटा भी स्वयं एक एक आवाज है ज़िन्दगी की धुन पे बजने वाला मधुर साज है !
अरविन्द योगी 

तुम मुझसे प्यार करती हो

तुम मुझसे प्यार करती हो
तुम मुझसे प्यार करती हो
जैसे अपनी स्वेक्षा से उमड़ कर
तितलियाँ फूलों से करती है
बादलों की जुल्फों से
टपक कर हरी दूब से
चिपककर सावन की रिमझिम बूंदें
प्यार करती हों जैसे
हाँ तुम मुझसे प्यार करती हो !...................
गुलाब की पंखुड़ियों की तरह
शूलों से लिपटकर भी
मुस्कराती है अपने भाग्य पर
तुम भी अपूर्ण हो मेरे बिना
ज्यों कोमल पंखुडियां
शूलों के बिना
तुम मुझसे प्यार करती हो ............
शशि की रात में
जमीन से आसमान की फलक तक
फैली ज्योत्सना की तरह
अमावश की रात में
शाहिल से टकराती लहरों की तरह
मै तुमसे प्यार करता हूँ
अपनी कल्पना में उपजी
हर एक कविता की तरह
तुम्हे याद करता हूँ
आयत की तरह
मै तड़प उठता हूँ
जब तुम रुनझुन करती हो
मेरे ह्रदय में
पैरों की पायल की तरह
गा उठता है मेरे दर्द का हर गीत
एक पागल प्रीत की तरह
तुम मुझसे प्यार करती हो .............
पंख और परवाज की तरह
हर धुन में बजती हो
सांसो में साँस की तरह
सच तुम योगी से प्यार करती हो
तुम मुझसे प्यार करती हो

अरविन्द योगी 

देखो!आज है बसंत नया

सूर्य की स्निग्ध रश्मियों में
हवा की चंचल परियों में
मन की अंचल लहरों में
जीवन के गावों शहरों में
रंग कोई भर गया
देखो! आज है बसंत नया -----------------------
फूलों में कलियों में
जीवन की गलियों में
महफ़िल की रंगलियों में
मंजिल की पहियों में
रंग कोई भर गया
देखो!आज है बसंत नया ----------------
चाँद में चकोर में
परिवर्तन की भोर में
हर्षोरुदन की शोर में
सूर्य के अघोर में
रंग कोई भर गया
देखो ! आज है बसंत नया ----------------
स्वदेश में विदेश में
जीवन के हर परिवेश में
मानवता के हर सन्देश में
विश्व के विशेष में
रंग कोई भर गया
देखो ! आज है बसंत नया -----------------
तितली से ख्वाबों में
यादों में इरादों में
प्रेम प्रणय के प्रवाहों में
प्रियतम की बाँहों में
मन की निगाहों में
रंग कोई भर गया
देखो ! आज है बसंत नया ---------------
जल में तल में भुज में बल में
प्यार की गजल में
कल से आज में और नए कल में
प्यार के जल में
प्रीत के तल में
ज्ञान के प्रकाश में
धरा से आकाश में
रंग कोई भर गया
देखो ! आज है बसंत नया -------------
योग में प्रयोग में
भोग में संयोग में
मनोयोगी की योग से
जीवन की वियोग में
कल्पना के प्रयोग में
संयोग में वियोग में
हर योगी की योग में
रंग कोई भर गया
देखो ! आज है बसंत नया --------------------
यह कविता क्यों ? खुद देखें कि कल , आज और आने वाले जीवन के कल में बसंत क्या था, क्या है और होगा
अरविन्द *योगी * 

गुलदस्ते का गुलाब

गुलदस्ते का गुलाब
गुलदस्ते में रखा गुलाब
कह रहा आपनी बीती कहानी
कभी मुस्कराता सुबह
कभी दर्द भरी खामोश शाम
कभी मस्त हवाओं का झोंका
कभी उजड़े बहारों का ख्वाब
सूखे डाली की पत्तियां
अरमानो से सजी अधखिली कलियाँ
कभी शुलों का दामन
कभी माली का अपनापन
सब छुट जाता है
जब कोई कली गुलाब बनता है
टूटकर डाली से
बाजार में बिकता है
और प्रेमहार बन
कभी प्रेमिका को रिझाता है
या स्राधासुमन बन
कभी पार्थिव तन को सजाता है
लेकिन हरपल मुस्कराता है
कभी ज़िन्दगी की किताब में
एक पन्ने में सुखकर
बीते वक़्त की याद बन जाता है
कभी बाजार में बिककर
नए दिलों में नए ख्वाब सजाता है
कितनी अजीब दास्ताँ है
शूलों के बादशाह की
ज़िन्दगी के हर पल को
मुस्कराकर जीता है
दिल में हो दर्द
लेकिन ख़ुशी के जाम पीता है
खुद रोकर भी
मुस्कराने की वजह देता है
शायद जीना इसी का नाम है
जो शूलों में छिपा गुलाब हिया
ज़िन्दगी के गुलदस्ते की
कभी पूरी तो कभी अधूरी
फिर भी एक हसीं ख्वाब है
गुलदस्ते में रखा योगी ने गुलाब है
ओंन दरोज डे अरविन्द योगी 

योगी मन एक बंजारा है

गली गली की खाक छानता
क्षीण क्षुद्र क्षणभंगुर दुर्बल
पथिक बन घूम रहा
योगी मन एक बंजारा है -------------------
पर धन्य हुआ जय दुनिया बोली
हंसमुख यह बंजारा है
जग जर्जर प्रतिदिन प्रतिपल
देव दानव गन्धर्व मनुज
घाट जाता है सबका बल
पर मन की गति को
रोक सका है कौन सा बल ?
मन की गति निश्चल अविरल
बढ़ता जाये हर पल प्रतिपल
योगी मन एक बंजारा है ------------------
हर आशा और निराशा में
जीवन की अभिलाषा में
मृत्यु की परिभाषा में
हँसता जाये रोता जाये
पर हरपल चलता जाये
इसकी गति न रुकने पाए
लम्हे गुजरीसदियाँ बीती
प्रेम प्रणय की लडिया टूटी
पर तनहा मन गता जाये
योगी मन एक बंजारा है --------
धन्य हुआ जय दुनिया बोली
हंसमुख यह हरकारा है -------
अरविन्द योगी *मन की गति को कौन रोक सकता है 

नारी तुम केवल ममता हो

नारी तुम केवल ममता हो
नारी तुम केवल ममता हो
सुख दुःख की समता हो
विस्व्पटल की क्षमता हो
त्रिभुवन में तुम रमता हो
नारी तुम केवल ममता हो -------------------
मन की निर्मल गंगा हो
जग- जननी जगदम्बा हो
कभी तो रम्भा हो
कभी शिवशक्ति अनुसंगा हो
हर पल अनंता हो
नारी तुम केवल ममता हो -----------------
जन्म मरण की कथा हो तुम
फिर क्यों दुखी मन व्यथा हो तुम
आँचल में ममता आँखों में नीर क्यों उद्वेलित मन पीर हो तुम
कविता की कल्पना हो तुम
हर सौंदर्य की अल्पना हो तुम
योगी सृष्टि की संकल्पना हो तुम
नारी तुम केवल ममता हो - अरविन्द योगी *नारी के प्रति *

वो बचपन की दिप्ती

वो बचपन की दिप्ती

वो दिप्ती वो दिप्ती
वो बचपन की दिप्ती
वो नन्ही सी दिप्ती
वो नटखट सी दिप्ती
वो मम्मी की थपकी
वो पापा की डांटे
वो बचपन की बातें
वो बचपन की दिप्ती ------------
मै भूली नहीं कुछ
अभी भी है ताजा
वो दादी के किस्से
वो पूनम की रातें
वो बचपन की बातें
वो बचपन की दिप्ती
टिफिन को चुराके छिपाकरके खाना
वो दोस्तों को झूठी बातें बताना
वो दोस्तों से लड़ना
फिर फिरना मनाते
वो बचपन की बातें
वो नन्ही सी दिप्ती
बनी आज कर्मपथ पे
अविरल ज्योति की दिप्ती
नए उडान की नए स्वाभिमान की
नए अरमान की योगी सी दिप्ती
नए आसमान की ज्योति सी दिप्ती
वो दिप्ती वो दिप्ती
वो बचपन की दिप्ती
वो नन्ही सी दिप्ती
वो नटखट सी दिप्ती
एक कर्मठी व्यक्तित्व जो स्वयं में एक दिप्ती है सबकी आशाओं एवम अरमानो की चिंगारी है है जिसकी जिंदगी सिर्फ चलते रहना और जलते रहना तूफान में बरसात में
सहृदय समर्पित *अरविन्द योगी *

पागलों सा प्यार मेरा तुमको याद आएगा,

पागलों सा योगी प्यार तुझको याद आएगा
आसमाँ में जब चाँद पूरा मुस्कराएगा,
पागलों सा प्यार मेरा तुमको याद आएगा,
कोई पागल जब प्यार में खुद को मिटाएगा
तेरे आँखों से आंसू छलक आएगा
जुड़ता नहीं दर्पण जब कोई चूर होता है
मिलता नहीं कोई जब दिल से दूर होता है
शिशाएदिल मैंने ही चूर किया है
तूने नहीं मैंने ही तुझे खुद से दूर किया है
तेरी यादो का हमने जो जाम पिया है
तेरी यादो का दिल ने हर जख्म सिला है
सच है तेरी आँखों से अश्क बह जायेगा
इन अश्को से ये बहम धुल जायेगा
तुम डॉ जाओगे अपनी परछाई से
याद करोगे जब हमें दिल कि गहराई से
मेरा मोहब्बते आंशिया मिटने वाले
तेरा साया भी तुझसे रूठ जायेगा
आसमा में जब चाँद पूरा मुस्कराएगा
पागलों सा प्यार मेरा तुझको याद आएगा----------------
मई हूँ मुसाफिर तुझसे दूर चला जाऊंगा
फिर मिलु न मिलु क्या खबर ऐ रहगुजर
तेरा दिल न मुझको भूल पायेगा
दिल ने दर्दे आंशिया चुन लिया है
दिल दर्द में घुल गया है खुद को भूल गया है
मै हूँ दर्दे आवाज योगी पर
तुम दिया बनकर पीर का कैसे जल सकोगी
तेरे अश्को को पोछने वाला जब कोई न रह पायेगा
आसमा में जब चाँद पूरा मुस्कराएगा
पागलों सा प्यार मेरा तुझको याद आएगा---------------
मोह्बब्ते संगीत हर धुन पे बिखर जायेगा
तेरी आँखों में मेरा प्यार अश्क बन मुस्कराएगा
प्राण गागर का समूचा प्यार तुझको दे दिया था
हाँ बिन मांगे हर अधिकार तुझको दे दिया था
अब यादो के मेले है आँखों से मन के घावों तक
ये जग सारा डूबा है तेरे प्यार में
सर से लेकर पावों तक
जिन्हें तुम समझते हो हमारे प्यार कि उचाइयां
वो है हमारे जा चुके कल की परछाईया
मत हमे सहारा तुम दो जख्मी पैरों से चलने दो
दूर हूँ तुमसे खुद से दूर ही रहने दो
बीते दिनों के दर्द दिल को सहने दो
लो मै वापस तुम्हे तुम्हारा प्यार देता हूँ
खुद को मौत तुझे जीने का अधिकार देता हूँ
दर्द का संसार देता हूँ जीवन भर का प्यार देता हूँ
पर जब आएगी खिडकियों से मेरी सदा
तडपायेगी तुझे मेरे प्यार की हर अदा
तब आसमा में जब चाँद पुर मुस्कराएगा
पागलों सा योगी प्यार तुझको याद आएगा ----------------
पागलों ने ही इस दुनिया को बहुत कुछ दिया है जो पागल नहीं हो सकता किसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु वो कुछ नहीं कर सकता
सो जीवन में एक सच्चा प्यार करो पागलों सा करो जीवन का अर्थ मिल जायेगा सहृदय समर्पित सभी प्रेमियों को जिस किसी ने भी कभी प्यार किया हो *अरविन्द योगी * 

रेत की तरह फिसलती जिंदगी

रेत की तरह फिसलती जिंदगी
दर्द के सेहरा में कुछ इस तरह सिमटती गई ज़िन्दगी
हांथो से रेत तरह फिसलती गई ज़िन्दगी
कुछ मोती हाँथ लगे दिल में आश जगे
पर पथ्थरो से पहचान करती गई ज़िन्दगी
कुछ सपने हमे ले गए शहर की ओर
दिल में छाए आश घनघोर
पर मजबूरियों में कुछ इस तरह जकड़ती गई ज़िन्दगी
चाह कर भी न लौट सके हम अपनों की ओर
कारवां गुजरता रहा हम खड़े रहे एक ओर
हकीकत के भंवर में डुबोती गई ज़िन्दगी
अब तो योगी आशाओ में तैरते चले जाते है
देखते है किस मुकाम पे ले जाती है ज़िन्दगी 

पत्थर भी भगवान बनते है

पत्थर भी भगवान बनते है
तेरी नजर से जग में उजाला छाता है
तेरी नजर से दुनिया बनती बिगडती है
तेरे जब लहराते केश घुंघराले
काली घटा घिर-घिर के आती है
तेरी मुस्कान से कलिया सुमन बन मुस्कराती है
तेरी चितवन से जग में मधुमाश छाता है
जो ख़ुशी के हर रंग लाता है
तेरे होंठो की लाली सुबह का श्रिंगार करती है
तेरे रूप की आभा से तारे नखत में झिलमिलाते है
तेरे पायल की रुनझुन से
साज राग को मल्हार करती है
तेरी लेखनी से योगी ह्रदय
मधुर गीत का निर्माण करती है
कहाँ तक कहूं मै महिमा तेरी
तेरी अधरों से गीत सरगम पे साज रचाते है
तेरी ही ह्रदय से कंठ के तार खुलते है
तेरी छाया में संसार के घरबार चलते है
तेरी कृपा से योगी के पत्थर भी
भगवान बनते है
यह एक सूफी रचना है जिसका अर्थ प्रेमिका और माँ दोनो से है

बनारस


बनारस
परम्पराओ के शहर में ,
शिव के नगर में ,
श्रद्धा की लहर में,
भावना की भंवर में ,
आज भी
भाष्कर उगता है पूरब में ,
ढलता है पश्चिम में ,
कुछ भी बदला नहीं ,
परम्पराओ के शहर में,
मंदिरों के नगर में ,
आज भी ,
खामोश संगीत ,
गंगा की लहर में ,
अँधा विस्वास ,
भाव के भवंर में ,
वो इतिहास के पन्नो में छिपा पुराना मकान ,
जिसके बगल में आज भी है पान की दुकान,
लगता है जहाँ हर पल चौपाल ,
कभी नहीं रूकती जहाँ जीवन की रफ़्तार ,
जहाँ के कण -कण में है ,
सत्यम-शिवम्-सुन्दरम का प्यार ,
जहाँ मरण भी है नव जीवन का उपहार ,
जहाँ शिव करते सबका उदधार,
जिसके योग को मानता संसार ,
वो योगी बनारस है !

मत रो ऐ ज़िन्दगी दुःख कब दूर होते है ,

मत रो ऐ ज़िन्दगी दुःख कब दूर होते है ,
गम के आंसू बहाने से ,
बस चुरा लो इन यादो को ,मुकद्दर के दर्दखाने से ,
ज़िन्दगी रूकती नहीं ,
अपनों के साथ छोड़ जाने से ,
तनहा भी चलना पड़ता है ,
यादो की गलियारों से ,
कुछ मिलता नहीं आंसू भने से ,
पर दिल समझता नहीं ,
लाख समझाने से
क्या-क्या सपने देखते
और सपने सजोते है हम
पर कच्ची मिटटी सी चटक जाते है
सब वक़्त की धूप में,
सबको मिलती है जिंदगी यहाँ ,
दर्द के हर रूप में ,
कितने ही अधूरे वादे और खामोश तन्हा यादे ,
छोड़ जाता है हर कोई अपने पीछे ,
और जाने कौन सी दुनिया है ,
जहाँ से वापस नहीं आता है कोई ,
जिसके लिए ये आँखे कभी ना सोयी ,
बस उनकी तन्हाई में हर पल है रोयी,
पर ना रो ऐ मेरी ज़िन्दगी ,
दुःख कब दूर होते है ,
गम के आंसू बहाने से ,
चुरा लो इन यादो को ,
मुकद्दर के खजाने से ,
क्योकि जाने वाला फिर ,
लौट कर नहीं आता वापस *योगी*
उसकी यादो में आंसू बहाने से
शशि की माँ की मृतु पर सहृदय समर्पित *अरविन्द योगी*

एक छोटा सा नन्हा सा बच्चा

एक छोटा सा नन्हा सा बच्चा
उम्र का बिलकुल कच्चा
हृदय का बिलकुल सच्चा
हाँथ में लिए देश का झंडा
किसी तरह नन्हे हांथो से
पकडे हुए कर्तव्य का डंडा
कर्म पथ पे पड़ा हुआ है
बचपन से ही रोटी से
इस कदर जुदा हुआ है
तन मन गरीबी से जुड़ा हुआ है
बाप मदिरालय में
माँ शिवालय में
बहन कुछ बड़ी है जो
दुसरो का बर्तन मांजती है
हर पल सहारे का मुह ताकती है
देश के सविधान में
ऊँचे आसमान में तिरंगा लहरेगा
कुछ सुविचार और सुन्दर भासण
देश को समर्पित करेंगे हम
देश भक्ति अर्पित करेंगे हम
पर तिरंगा जिस जमीन पे खड़ा होगा
क्या वो मजबूत होगा
इस बचपन को रुलाते हुए
भूखे पेट जाने कितनो को सुलाते हुए
ये देश हर वर्ष गणतंत्र मनायेगा
हर दिशा में खुशिया मनायेगा
और भारत का बचपन
यूँही भूखे पेट सो जायेगा
गर ये बचपन अपने देश का तिरंगा नही बेच पायेगा
क्या भारत यूँही गणतंत्र मनायेगा
आइये आगे बढे कुछ देश हित में करे
भारत का झंडा इन नन्हे से फहरावाएं
देश के इस भटकते बचपन को
सुन्दर भविष्य की दिशा दिखाएँ
योगी भारत का दुर्योग भगाएं
देश के मासूम बचपन को सहृदय समर्पित *अरविन्द योगी * कल जब गणतंत्र मनाये तो सोचे की देश कहाँ है?

क्या पाया -क्या छूट गया

क्या पाया -क्या छूट गया
क्या पाया क्या छूट गया
बीता लम्हा पूछ गया
कल तक हमसे खुश था जो
जाने क्यों अब रूठ गया वो
नीले आसमान से टपकी बूँद सोंधी माटी सी उसकी वजूद
हवाओ में बहकते उसके सुर
गीत मेरे और उसके सुर
यादो की फिजा में पनघट की दिशा में
आज भी पंछी बन गुनगुनाते है
हवाओ में बहकते उसके सुर !
यादो की झील में , सितारे भी तैरते हैं ,
पंछी भी पानी पीते है
बदल भी उतरते है
और उनकी छवि फूलो में मुस्काती है
योगी मन गीत सजाते है
उन यादो की हवा में चलते चले जाते है
पर हकीकत के बादल ,
योगी मन में प्रश्न छोड़ जाते है ,
क्या पाया क्या छूट गया,
कौन खुश है योगी से
कौन है जो रूठ गया !
अरविन्द योगी

सुबहे बनारस

सुबहे बनारस
खामोश गंगा की लहर से ,
भावनाओ के भवंर से ,
उगते सूरज की किरणों से
लाल रंग की लालिमा , स्वयं में समेटे लहू की कालिमा ,
रक्त -रंजित करती मंदिर की सीढियों को ,
काल-कलवित करती सदियों और पीढियों को ,
कोमल भावनाओ की पंखुडियो को कुचल डाला ,
हाय क्या कर डाला मंगल शाम की काली छाया ने,
क्या कोमल भावनाए इतनी काल्पनिक है ,
क्या श्रधा की डोर इतनी नाजुक है ,
इन्सान रोने लगा है ,
इंसानियत खोने लगा है !
लहू आज पानी है , नई नहीं ये कहानी है ,
बात सदियों पुरानी है ,
इन्सान को इन्सान मारता है ,
क्या हुआ शिव तेरे शहर को ,
क्या हुआ उस सुबह को ,
जिसे हम सुबहे -बनारस कहते थे !
जिसमे योगी रत -दिन जीते थे !
यह कविता बनारस में आठ दिसम्बर दो हजार दस की काली मंगल शाम पर उकेरी गई एक कोशिश है !
अरविन्द भारद्वाज *योगी

Sunday 10 April 2011

बैठकर बनारस में , बनारस को देखा

बैठकर बनारस में , बनारस को देखा

बैठकर बनारस में , बनारस को देखा
रसमय रसो में डूबे, रासरस को देखा
न बनती न बिगडती , हर पल सजती
ना कुछ कहती फिर भी कुछ कहती
शाशिमय सुमधुर सुंदर चित्रलेखा
बैठकर बनारस में बनारस को देखा !

रंगों में डूबे हर रंगों को देखा
अंगों में डूबे हर अंगों को देखा
जीवन में डूबे हर संतों को देखा
जीवन से परे हर असंतों को देखा
जन्म से परे हर बंधन की रेखा
बनती बिगडती जीवन की रेखा
हर बंधन से हर मुक्ति को देखा
बैठकर बनारस में बनारस को देखा !

मिटटी में खोये सोने को देखा
कुछ पाने में कुछ खोने को देखा
हर हंसी में कुछ रोने को देखा
बचपन के मासूम सपने को देखा
आंसुओं में डूबे किसी अपने को देखा
शाशिमय दुल्हन में सजे गहने को देखा
बैठकर बनारस में बनारस को देखा !

पनघट पर उगते सूरज को देखा
लहरों पर डूबते किरणों को देखा
भवंर में लड़ते नावों को देखा
शहर में मरते गांवों को देखा
रातों में घाटों के लाशों को देखा
आगो में जलते आगों को देखा
बैठकर बनारस में बनारस को देखा !

मस्ती में डूबे मस्तो को देखा
गली में मुड़े रस्तों को देखा
लोगों से जुड़ते लोगों को देखा
योगों में सारे वियोगों को देखा
शक्ति में भक्ति ,भक्ति में शक्ति
सस्ती से सस्ती मस्ती से मस्ती
रिवाजों लिहाजों मिजाजों को देखा
बैठकर बनारस में बनारस को देखा !

यह कविता क्यों ? शिवमय बनारस में रसमय रसों की खान है ! बनारस मस्ती की वृन्दावन है ! जो हर प्राणी की मुक्तिवन है ! जहाँ जन्म भी मंगलकारी है एवम मृत्यु भी हितकारी है ! जहाँ जन्म से बंधन और बंधन से जन्म का क्रम अविरत है ! जो चराचर है अजर है अमर है बस शिवमय है !

अरविन्द योगी

एक नन्ही सी जान

एक नन्ही सी जान
छोटी सी पहचान
इतना बड़ा जहान
बस यादों का मचान
प्रारब्ध जीवन का
बस अंत श्मशान
हर सुबह हर शाम
मिट जाते कितने नाम
एक नन्ही सी जान
बिलकुल अनजान !

ना देख पायी
सुनहली धुप दोपहर की छाँव
मौत पसारे अपना पावं
आयी जीवन की शाम
बाकि रह गयी
बस दर्द की रात
जुबान ना कह सकी कोई बात
जीवन की कैसी सौगात
धरे रह गए सारे दावं
मिट गए सपने माटी के भाव
मौत पसारे अपना पावं
जीवन हर पल एक पड़ाव
मौत है सबका लक्ष्य पड़ाव
योगी एक नन्ही सी जान
बस इतनी सी पहचान !

यह कविता क्यों ?जिंदगी की तलहटी में कोई कितना भी हाँथ पावं मार ले मगर जीवन एक ना एक दिन मौत के आगोश में डूब कर परम शांति और बंधन मुक्ति को ही प्राप्त करती है ! अरविन्द योगी ११/०४/२०११

मुट्ठी लहुलुहान हो गयी

 "हांथो में था जुगनू सोचा
हर लेगा तम सारा
मुट्ठी लहुलुहान हो गयी
छा गया फिर अँधियारा"

सपनो का रोग है जिंदगी

कर्मयोग है ज़िन्दगी

कल्पनाओ का शोध है ज़िन्दगी
सपनो का रोग है जिंदगी
योगी का योग है जिंदगी
हर पल कर्मयोग है जिंदगी
कर्म का भोग भोग का कर्म
कुछ सत्कर्म कुछ दुष्कर्म
हांसिये पर मानव धर्म
समझ कर भी ना समझा
जो जीवन का मर्म
चिता तक ना आती उसे शर्म
क्योकि हर पल एक नयी खोज है जिंदगी

अरविन्द योगी १०/०४/२०११

Saturday 9 April 2011

सहारा चाहती है जिंदगी

सहारा चाहती है जिंदगी

आज गमे तूफान में
किनारा चाहती है जिंदगी
जहान में कहीं कोई अपना नहीं
मै हूँ और मेरी तनहाइयाँ
बीते कल की परछैयाँ

वफ़ा और रुशवैयां
दर्द की थपेड़ो में बहती
आंखो से मन की तनहाइयाँ
रिस्तो में बढती खाइयाँ
सपनो की अमरैयाँ
बचपन की लड़ाइयाँ
बस हर पल
फिर से जीने का बहाना चाहती है
किसी अपने का जीवन में
सहारा चाहती है जिंदगी
उसे अपना बनाना चाहती है जिंदगी !

यह कविता क्यों ? जिंदगी सिर्फ एक छोटी सी खुसी और छोटा गम है जो भी मिले दिल से लगा लो दर्द का प्यार से गहरा नाता है जहां दर्द नहीं वहां प्यार नहीं !
०१/०२/२०१० अरविन्द योगी

मृतक भोज

मृतक भोज

एक सामाजिक सोच
मृत आत्मा को क्या दे पाता संतोष
मन में विस्मित संकोच
जो जुड़ा है मन की गहराई से
यादों की पुरवाई से
क्या बढे है उससे
अब भी तन के रिश्ते
मन के रिश्ते
जो बन गए है दूसरी दुनिया के फरिस्ते
एक दावत की शाम
उस मृतक के नाम
आँखे नम है
उसकी यादों के गम है
बस मन के रिश्ते जोड़ लो
बाकि रिश्ते तोड़ दो
उसके बिन दुनिया देखो
मुस्करा कर गम पीना सीखो
मृतक भोज एक भ्रान्ति है
बस रोजी रोटी की
एक छोटी सी क्रांति है
योगी मन कहाँ शांति है
मृतक भोज भी अब अशांति है
यह कविता क्यों ? सामाजिक आडम्बर कभी शांति नहीं देते मन की श्रद्धा और समर्पण ही शांति का द्योतक है !
अरविन्द योगी १०/०४/२०११ 

Thursday 7 April 2011

हे भारत की नारियां तुझको मेरा प्रणाम है !

हे भारत की नारियां तुझको मेरा प्रणाम है !

हे भारत की नारियां तुझको मेरा प्रणाम है
जो तू सुधरे तो सुधरे संसार है
तू जो चाहे तो गिर जाये देश की सरकार है
तेरे चरणों के नीचे रहती मर्दों की प्राण है
देवता भी पूजे तुझको क्या पाया खूब वरदान है
तुझसे कौन जीता है जो मेरी कम औकात है
तेरी इच्छा के बिना न होता कोई काम है
हे भारत की नारियां तुझको मेरा प्रणाम है !------------------
हर रूप में ये नारी हर घर में विद्यमान है
पल में दुर्गा पल में काली, लक्ष्मी का अवतार है
तेरी भृकुटी पर चलता ये संसार है
घर को ये नारी रणभूमि बना दे बस एक मिनट का काम है
नारी विजय विश्व विजय का नाम है
हे भारत की नारियां तुझको मेरा प्रणाम है !---------------------
गोला बारूद आत्म बम सब तेरे आगे बेकार है
तू साक्षात् बिजली का अवतार है
तू कभी प्यार की बदली कभी नफरत की बरसात है
तू माँ का प्यार और भावनाओ का संसार है
डिएम डिप्टी सब इन्स्पेक्टर सभी तुझसे डरते है
देख तेरे नखरे औंधे मुंह गिरते है
हे भारत की नारियां तुझको मेरा प्रणाम है !
नारी महिमा अभी शेष है क्रमश ! अरविन्द योगी
विश्व महिला दिवस पर योगी भावनाओं की कोमल अभिव्यक्ति है श्रीदे समर्पित समस्त नारी विश्व नारी शक्ति जय हो !

भारत को हर साल विश्व गुरु का नाम मिले

भारत को हर साल विश्व गुरु का नाम मिले

नव वर्ष में तेरे सपनो को
उन्मुक्त अनंत उडान मिले
हर ख्वाब को पूरा कर दे जो
तुझको ऐसा अरमान मिले
कोई ह्रदय से तुमको चाहे
तुझे प्रीत का हर सम्मान मिले
नदियों सा प्राण मिले
पर्वत जैसा अभिमान मिले
कोई राह तुझे न वीरान मिले
हर राह को एक नया अंजाम मिले
चहरे पर ही नहीं दिल में हो
तुझको ऐसी मुकन मिले
हर सुबह तेरी उम्मीद भरी
हर शाम को तेरी शान मिले
हर रात तुम्हारी नीदों को
किसी लोरी का अरमान मिले
हम नाज करें तुझपे ऐ दोस्त
तुझको ऐसा ईमान मिले
इस साल तू ऐसा कर जाये
दुश्मन से भी तुझको सम्मान मिले
कोई दुखी न हो तेरी बस्ती में
सबको खुशियों का जाम मिले
आतंक के बेधड़क शोलो को
एक चीर अनंत विराम मिले कुछ
और नहीं योगी जीवन को सम्मान मिले
भारत को हर साल विश्व गुरु का नाम मिले
हर साल एक नई पहचान मिले

भारतीय परम्परा अनुसार जब भी भारत में नव वर्ष हो कुछ नया न हो ऐसा नहीं हुआ आज तक और आगे भी ऐसा ही हो जय हिंद जय भारत
सभी भारतीयों को नव वर्ष में विश्व विजयी होने पर हार्दिक शुभकामनाये
अरविन्द योगी ०४/०४/२०११

यादो में दर्द अभी है

यादों की बर्फ जमी है
यादो में दर्द अभी है
जिस दरख्त के नीचे
आंसू की झील बही है
यादो की पीर वही है
कुछ आँखों में नमी है
किसी अपने की कमी है
वो है आशियाना अपना
धरती है चंदा है आसमान है
बहुत बड़ा ये जहाँ है
जिसे खोजे दिल जाने
वो कहाँ है जाने कहाँ है ?
मै तो इंतजार के राह का पत्थर हूँ
जो रो पड़ा तो क्या
बचपन जवानी फिर बुडापा
ये कहानी सबकी
जो पत्थर बन गए तो
क्या जिन्दगी अपनी
अरविन्द योगी

मै भारत हूँ

मै भारत हूँ

पूरब की तलहटी में बैठा
सृष्टि के सृजन में
एक आधारशिला
अरुणोदय चक्षुओ में गुंजित
भ्रमर से पल पल्लवित
सुमधुर सुन्दर सुशोभित
सदा सत्यम शिवम् सुन्दरम
मै भारत हूँ !

नव किसलय नव पवन मलय
नव पुलकित इशांत नव ज्ञान प्रशांत
नव पारस नव निर्माण
पुरातन भाषा पुरातन पहचान
जड़ चेतन सज्ञान स्वयं में महान
मै भारत हूँ

मै दर्शन हूँ अर्पण हूँ
शिव का विश्व को समर्पण हूँ
पुरातन दर्शन और विश्व का दर्पण हूँ
दुर्भाग्यवश अर्जुन हूँ
हमेशा मुझसे कोई कर्ण मरा है
पीपल का छाँव हूँ
जीवन का पड़ाव हूँ
विश्व में हूँ पर खुद में अलगाव हूँ
जिंदगी की तलहटी में
हर किनारों का पड़ाव हूँ
हर पल एक नव बहाव हूँ
भावनाओ का बहाव हूँ
मै भारत हूँ !

विश्व की मर्यादा हूँ
धर्म की दहलीज हूँ
हर प्रीत की रीत हूँ
एक मधुमय संगीत हूँ
नव साज हूँ नव राग हूँ
भाव का अनुभाव हूँ
धर्म की पावन धरती
कर्म से बंधन की मुक्ति
जीवन की वैज्ञानिक सूक्ति
प्रमाण की प्रत्यक्ष उक्ति
मै भारत हूँ !
भारत क्या है ? बचपन जवानी और बुडापा सब देखे है इस भारत ने फिर भी हमेशा सदाबहार रहा है विस्व्गुरु भारत ! आप खुद सोचे की भारत क्या है ?
अरविन्द योगी ०६/०४/२०११

आप दिल की अंजुमन में

आप दिल की अंजुमन में

आप दिल की अंजुमन में
हुश्न बन कर आ गए
एक नशा सा छा गया
हम बिन पिए लहरा गए
देखिये तो क्या कह रही है
हर नजर झुक कर सलाम
सोचिये तो ये दिलो की
धडकनों का पैगाम
हमने दिल को कर दिया है
उन हसीं आँखों के नाम
जिन हंसीन आँखों से हम
राजे मोहब्बत पा गए
आप दिल की अंजुमन में
हुश्न बन कर आ गए

फूल बन कर खिल उठे है
आपके आने से हम
शम्मा बन कर दूर रहते
कैसे परवाने से हम
धडकनों से गीत उभरे
और लबों पे छा गए
योग उनसे सीख कर
योगी बन जी रहे है
उनकी याद में
अश्क अपने पी रहे है
फिर भी मुस्करा कर जी रहे है
आप दिल की अंजुमन में
हुश्न बन कर आ गए
यह कविता क्यों ? मोहब्बत दिल में मुस्कराता हुआ एक मीठा सा दर्द है जिसे एहसास है वो गम में भी मुस्करा उठता है !
अरविन्द योगी ०६/०४/२०११

जीवन हर पल विशेष है !-

जीवन हर पल विशेष है !-

जीवन हर पल विषेस है
जीतनी भी बीत जाये
पर कुछ अभी शेष है
जन्म यौवन मरण मुक्ति
हर पल विशेष है
जलती चिता यादों का धुआं
पर अस्थियाँ अभी शेष है
किसी का नाम हो जाता गुमनाम
पर जीवन के रेगिस्तान पर
कुछ कदमो के निशाँ अभी शेष है
जीवन हर पल विशेष है !-----

जीवन एक यात्रा अभिलेख है
पर मृत्यु मुक्ति अभिषेक है
बीत जाये चाहे सदियाँ
यादो की घड़ियाँ सपनों की लड़ियाँ
पर जीकर भी जीवन
जीने का स्वप्न अभी शेष है

योगी मन एक बंजारा
हंसमुख है हरकारा कभी न हारा
पर जीवन यात्रा अंत से भी
नव यात्रा विशेष है
कितन भी जी लें
जीवन अभी शेष है
जीवन अभी शेष है !
यह कविता क्यों ? जिस अंत को हम अंत समझते है वही तो नव्यतर का प्रारब्ध है कुछ बाते हमेशा रह जाती है जैसे आँखों के सपने ,किसी का नाम कोई पहचान !
अरविन्द योगी ०६/०४/२०११

राम नाम सत्य है


     राम नाम सत्य है
 
राम नाम  सत्य है
अन्य सब असत्य है 
जन्म असत्य है 
बस मृत्यु सत्य है 
पर जीवन तो असत्य है 
कभी शिव का तांडव नृत्य है 
कभी अर्जुन का कर्म कृत्य है
जीवन तो सदृश्य है 
फिर मृत्यु क्यों अदृश्य है
ओह ! जब जीवन असत्य है 
तो कर्म क्यों सत्य है 
जब कर्म भी सत्य है 
तो कर्ता क्यों असत्य है

जब राम नाम सत्य हो 
क्यों कर्म नाम असत्य हो 
मरण क्यों निर्मिमेष है 
जीवन तो अभी शेष है 
कर्म क्षेत्र खड़ा है 
फर्ज लड़ने पर अड़ा है 
पर हे सदा सर्वदा सत्य 
कर्म नाम सत्य हो 
मै योगी हूँ भारतीय हूँ 
मै कहना चाहता हूँ 
मै सुनना चाहता हूँ 
राम नाम सत्य है
 जीवन नाम सत्य है    
देखो गम में भी 
मुस्कराकर मस्त है
जन्म नाम सत्य है 
कर्म नाम सत्य है 
मरण नाम सत्य है 
राम नाम सत्य है
 बाकि योगी सब असत्य है  
यह कविता क्यों ? कर्म ही इन्सान की पहचान है उसके जाने के बाद बस कर्म है जो उसकी याद दिलाते है  मृत्यु उपरांत राम नाम के साथ मरने वाले का नाम भी जोड़ना संभवत सत्य है !
     अरविन्द योगी  ०७/०४/२०११ 

Friday 1 April 2011

हे भारत की नारियां तुझको मेरा प्रणाम है !

हे भारत की नारियां तुझको मेरा प्रणाम है
जो तू सुधरे तो सुधरे संसार है
तू जो चाहे तो गिर जाये देश की सरकार है
तेरे चरणों के नीचे रहती मर्दों की प्राण है
देवता भी पूजे तुझको क्या पाया खूब वरदान है
तुझसे कौन जीता है जो मेरी कम औकात है
तेरी इच्छा के बिना न होता कोई काम है
हे भारत की नारियां तुझको मेरा प्रणाम है !------------------
हर रूप में ये नारी हर घर में विद्यमान है
पल में दुर्गा पल में काली, लक्ष्मी का अवतार है
तेरी भृकुटी पर चलता ये संसार है
घर को ये नारी रणभूमि बना दे बस एक मिनट का काम है
नारी विजय विश्व विजय का नाम है
हे भारत की नारियां तुझको मेरा प्रणाम है !---------------------
गोला बारूद आत्म बम सब तेरे आगे बेकार है
तू साक्षात् बिजली का अवतार है
तू कभी प्यार की बदली कभी नफरत की बरसात है
तू माँ का प्यार और भावनाओ का संसार है
डिएम डिप्टी सब इन्स्पेक्टर सभी तुझसे डरते है
देख तेरे नखरे औंधे मुंह गिरते है
हे भारत की नारियां तुझको मेरा प्रणाम है !
नारी महिमा अभी शेष है क्रमश ! अरविन्द योगी
विश्व महिला दिवस पर योगी भावनाओं की कोमल अभिव्यक्ति है श्रीदे समर्पित समस्त नारी विश्व नारी शक्ति जय हो

तेरी तन्हाई की बरसात में

गुजरा हूँ तेरे प्यार में उस मुकाम से
प्यार सा हो गया है प्यार के नाम से
जब तुम थे मेरे आँखों के सामने
न कुछ कह सका मै
मदहोश थे तेरे अदाओं के आईने
मेरे एहसास में तुम थे
जिंदगी की हर आश तुम थे
जब भी तनहा रहा
तन्हाई की बरसात में तुम थे
ऐसा पहली बार हुआ था
दिल में मीठा दर्द हुआ था
दिल मेरा बन पतंग
तेरी गलियों में उड़ता था
और तुझे देख कटकर
तेरे दामन में गिरता था
ना जाने क्यों तमसे प्यार किया
तेरी तन्हाई की बरसात में
योगी जीवन जिया
तेरी यादो ने क्या था
और मुझे क्या किया ?

प्यार एक बरसात है जो भींग सकता है वो ही जाने की प्यार की बुँदे कैसी होती है
अरविन्द योगी

बैठकर बनारस में , बनारस को देखा


बैठकर बनारस में , बनारस को देखा

बैठकर बनारस में , बनारस को देखा
रसमय रसो में डूबे, रासरस को देखा
न बनती न बिगडती , हर पल सजती
ना कुछ कहती फिर भी कुछ कहती
शाशिमय सुमधुर सुंदर चित्रलेखा
बैठकर बनारस में बनारस को देखा !

रंगों में डूबे हर रंगों को देखा
अंगों में डूबे हर अंगों को देखा
जीवन में डूबे हर संतों को देखा
जीवन से परे हर असंतों को देखा
जन्म से परे हर बंधन की रेखा
बनती बिगडती जीवन की रेखा
हर बंधन से हर मुक्ति को देखा
बैठकर बनारस में बनारस को देखा !

मिटटी में खोये सोने को देखा
कुछ पाने में कुछ खोने को देखा
हर हंसी में कुछ रोने को देखा
बचपन के मासूम सपने को देखा
आंसुओं में डूबे किसी अपने को देखा
शाशिमय दुल्हन में सजे गहने को देखा
बैठकर बनारस में बनारस को देखा !

पनघट पर उगते सूरज को देखा
लहरों पर डूबते किरणों को देखा
भवंर में लड़ते नावों को देखा
शहर में मरते गांवों को देखा
रातों में घाटों के लाशों को देखा
आगो में जलते आगों को देखा
बैठकर बनारस में बनारस को देखा !

मस्ती में डूबे मस्तो को देखा
गली में मुड़े रस्तों को देखा
लोगों से जुड़ते लोगों को देखा
योगों में सारे वियोगों को देखा
शक्ति में भक्ति ,भक्ति में शक्ति
सस्ती से सस्ती मस्ती से मस्ती
रिवाजों लिहाजों मिजाजों को देखा
बैठकर बनारस में बनारस को देखा !

यह कविता क्यों ? शिवमय बनारस में रसमय रसों की खान है ! बनारस मस्ती की वृन्दावन है ! जो हर प्राणी की मुक्तिवन है ! जहाँ जन्म भी मंगलकारी है एवम मृत्यु भी हितकारी है ! जहाँ जन्म से बंधन और बंधन से जन्म का क्रम अविरत है ! जो चराचर है अजर है अमर है बस शिवमय है !

अरविन्द योगी

Monday 28 March 2011

I LOVE MY INDIA

उसके दिए जख्म आज भी हरे है
दिल में एक कसक और आँखों में आंसू
आँखों से मन के घावो तक भरे है
उसके दिए जख्म आज भी हरे है
ना दिल में कोई फरियाद है
न सपनो की कोई सौगात है
बस भरी उसकी याद है
उसके दिए जख्म आज भी हरे है !

वो उनसे पहली मुलाकात
वो प्यार की मीठी सी बात
वो उनका पलट कर मुस्कराना
हौले - हौले से शर्र्माना
और निगाहें मिलते ही
मोरनी सा बल खाकर इठलाना
उसके दिए जख्म आज भी हरे है !

वो इंतजार के दिन
दिले इकरार के दिन
ना जाने कब दिल में वो बस गए
बिना कुछ कहे सब कुछ कह गए
वो मौषम की खुमारी
उनकी जुकाम की बीमारी
और बच्चो सी भोली भोली मुस्कान
सब याद है सब याद है *योगी *
उसके दिए जख्म आज भी हरे है !
       यह कविता क्यों ? प्यार एक भोली सी कल्पना है जिसका हकीकत बहुत ही रंगीन भी है और संगीन भी है !
अरविन्द योगी ०२/०२/२००९

जी रहे है लोग कैसे

जी रहे है लोग कैसे
जी रहे है लोग कैसे
आज के वातावरण में
सभ्यता की मांग सुनी
कोयले सर धुन रही है
बैठ कौवों की शरण में
घोर कलयुग है की दोनों
राम रावन एक से है
लक्ष्म्नो का हाँथ रहता
आजकल सीता हरण में
शब्द निरर्थक बन चुके है
अर्थ घोर अन्रर्थ करते
संधि कम विग्रह अधिक है
जिंदगी के व्याकरण में
झांकता है क्यों अँधेरा
सूर्य की पहली किरण में !
जी रहे है लोग कैसे
आज के वातावरण में !

             यह कविता क्यों ? आज जीवन का अर्थ ही निरर्थक बन गया है हर जगह विग्रह फैला हुआ है !
अरविन्द योगी

Saturday 26 March 2011

सजने लगी सपनो की बारात

अनोखी रात
सजने लगी सपनो की बारात
बढ़ने लगी अपनों की तादात
कहने लगी जिंदगी कुछ खाश
आने लगी अनोखी रात !
ढक गए शबनम से पात
कह गए हमदम से बात
सह गए हम तन्हा रात
रह गए हमदम से बात
ना आई अबतक अनोखी रात !
जिंदगी साधना का योग है
कल्पना का प्रयोग है स्नेह का वियोग है
स्वप्न का संयोग है
कभी तो आएगी अनोखी रात !
एक अवनि एक अम्बर
एक ही तल सबका बल
कल कल में बीते पल
फिर ना आये बीता पल
गुजर जाए जो जीवन का पल
तनहा योगी है अनोखी रात
यह कविता क्यों ? आने वाला पल सुन्दर होगा यह सोचना छोड़ इस पल को जिए क्योकि ये पल फिर नहीं आएगा जो इस पल को जी सकता है वही आने वाले पल में भी खुश रह सकता है! अरविन्द योगी

मै कोई ख्वाब नहीं

मै कोई ख्वाब नहीं
जो टूटकर बिखर जाऊंगा
मै तो वो हकीकत का आइना हूँ
जो हर नजर और नजरो में नजर आऊंगा
मै कोई प्रेमी नहीं जो किसी के प्यार में
खुद को मिटाऊंगा
मै तो प्यार की घटा हूँ
जो जीवन आँगन में बरस जाऊँगा
मै कोई कहानी नहीं
जो सिर्फ किताबो में छप जाऊंगा
मै वो वर्तमान हूँ जो
सुनहले भविष्य की राह बनाऊंगा
मै वो फूल नहीं जो बाज़ार में बिक जाऊंगा
मै वो कली हूँ जो जीवन बगिया महकाऊंगा
मै कोई आंसू का बूँद नहीं
जो आँखों से टपक जाऊँगा
मै वो आँखे हूँ जो आंसुओ को भी
ख़ुशी का तरन्नुम बनाऊंगा
मै कीचड में खिला वो अरविन्द हूँ
जो धरती को स्वर्ग बनाऊंगा
मुझे याद करोगे दुनिया वालो
जब तुमसे दूर बहुत दूर चला जाऊंगा
मै कोई नदिया की धार नहीं
जो सागर में खो जाऊंगा
मै वो किनारा हूँ
जो जीवन नदिया सा बहता जाऊँगा
मै वो कलमकार नहीं
जो वक़्त के हांथो बिक जाऊंगा
मै वो कास्तकार हूँ
जो काले अक्षरों में रोशनी की बात लिख जाऊंगा
मै कोई पत्थर की मूरत नहीं
मै कोई रेत का महल नहीं
जो तूफ़ान में ढह जाऊंगा
मै मजबूत इरादों का वो चट्टान हूँ
जो हरपल तूफ़ान से तकराऊंगा
मै वो आशिक नहीं
जो किसी शोख की जुल्फों में खो जाऊँगा
मै वो जुल्फकार हूँ
जो वक्क्त की जुल्फों को भी सुलझाऊंगा
मै कोई चिंगारी नहीं
जो किसी चिता को जलाऊंगा
मै तो वो आग हूँ
जो मुर्दों को जीना सिखाऊंगा
मै कोई दर्द नहीं
जो किसी के दिल को जलाऊंगा
मै तो वो याद हूँ
जो ना दिल से जाऊँगा और ना दिल का हो पाउँगा
मै दर्देदिल अरविन्द हूँ दर्द ही मेरी पहचान है
सच कहूं तो दर्द ही अरविन्द ही दर्द की जान है
पर ज़िन्दगी की आखिरी बारात में भी
जग से हँसता हुआ जाऊंगा
पर धरती को स्वर्ग बनाऊंगा
क्योकि मै अरविन्द हूँ !
                                                मै अरविन्द हूँ !

यह कविता क्यों ? मै अरविन्द हूँ क्योकि मै कीचड में खिला हूँ फिर भी ब्रम्ह के शीश पर शोभायमान हूँ मै छोटा सा इन्सान हूँ पर इन्सान में भी भगवन को देखता हूँ खुद के लिए दर्द पर सबकी ख़ुशी की महत्वाकांक्षा है मेरी
अरविन्द योगी

मै तो एक पागल कवि हूँ

क्या फर्क पड़ता है
मै तो एक पागल कवि हूँ
तम को काटता रवि हूँ
कौन किसलिए जीता है
कौन किसलिए पीता है
ज़िन्दगी तो सीता है
कर्मो की गीता है
भाग्य विपरीता है
यहाँ तो हर कोई
बस अपने लिए जीता है
मै तो राम की सीता हूँ
गीतों की गीता हूँ
पर मै तो एक पागल कवि हूँ !------------
मस्जिद का मौलवी
मंदिर का पुजारी हूँ
भाग्य का भिखारी हूँ
ना कोई अधिकार मेरा
कर्तव्य है संसार मेरा
जीवन है उपहार मेरा
अभिन्दन है प्यार तेरा
पर मै तो एक पागल कवि हूँ
तम को काटता रवि हूँ
मै तो एक कवि हूँ !

यह कविता क्यों ? मुझे प्रसन्नता है की मै एक कवि हूँ कम से कम समाज में दर्पण लिए फिरता हूँ
अरविन्द योगी

आज शिव की रात है

आज शिव की रात है
सपनो की सौगात है
शिव भोले का द्वार है
महिमा अपरम्पार है
सच्चे मन से जो पूजे
उसका बेडा पार है
सबका ही उद्धार है
आज शिव की रात है !-----------
भोले की बारात है
प्यार की सौगात है
खुशियों की बरसात है
भक्तो की अरदास है
आज शिव की रात है !-----
सच्चे मन से जो पूजे
उसका बेडा पार है
भोले सबके साथ है
पार्वती भी साथ है
फिर रोने की क्या बात है
मन क्यों तेरा उदास है
शिव जी तेरे पास है
डरने की क्या बात है
आज शिव की रात है
सच्चे मन से जो पूजे
उसका बेडा पार है
गंगा मां की धार है
भोलेनाथ का प्यार है
लीला अपरम्पार है
भक्तों का उद्धार है
जीवन का कल्याण है
हर शिव भक्त महान है
आज शिव की रात है
भोले का संसार है
सच्चे मन से जो पूजे
सबका बेडा पार है !
अरविन्द योगी - श्रीदे समर्पित बाबा भोले नाथ

नोकरी करने के कुछ नुस्खे :

१) बने रहो पगले , काम करेंगे अगले !!!!

२)काम से रहो गुल , तनख्वाह पाओ फुल !!!!

३)मत लो टेंशन वरना परिवार पायेगा पेंशन !!!!

४)काम से डरो नहीं और काम को करो नहीं !!!!

५) काम करो या ना करो , काम की फिक्र जरुर करो;
और फिक्र करो या ना करो पर उसका जिक्र जरुर करो !!!!

.......जनहित में जारी ............ ....
ARVIND YOGI

तेरी तन्हाई की बरसात में

गुजरा हूँ तेरे प्यार में उस मुकाम से
  
प्यार सा हो गया है प्यार के नाम से
जब तुम थे मेरे आँखों के सामने
न कुछ कह सका मै
मदहोश थे तेरे अदाओं के आईने
मेरे एहसास में तुम थे
जिंदगी की हर आश तुम थे
जब भी तनहा रहा
तन्हाई की बरसात में तुम थे
ऐसा पहली बार हुआ था
दिल में मीठा दर्द हुआ था
दिल मेरा बन पतंग
तेरी गलियों में उड़ता था
और तुझे देख कटकर
तेरे दामन में गिरता था
ना जाने क्यों तमसे प्यार किया
तेरी तन्हाई की बरसात में
योगी जीवन जिया
तेरी यादो ने क्या था
और मुझे क्या किया ?

प्यार एक बरसात है जो भींग सकता है वो ही जाने की प्यार की बुँदे कैसी होती है
अरविन्द योगी @

रिस्तो के रंग

रिस्तो के रंग
ज़िन्दगी के कैनवाश पर
हमने एक चित्र खीचा था
चित्र खीचा था एक नीली सी झील का
चित्र खीचा था मादक समीर का
चित्र खीचा था रिस्तो की जंजीर का
चित्र खीचा था उम्मीदों की तस्वीर का
एक प्यारी सी परी का
दर्द भरी दोपहरी का
कुलांच भरती हिरणी का
और इस झील में
मै जी भर नहाया था
हंसा मुस्कराया था
रुई से बर्फीले पथ पर
ज़िन्दगी के हर पग पर
नहीं फिसले मेरे पग
पर सूरज की सात घोड़ो के
तेज टापों ने
छितरा छितरा डाला मेरा रंगीन कैनवाश
थकी हारी नजरो से जब मैंने
कैनवाश को टटोला
तो सभी रंग गायब थे
गहरे से रिस्तो के
मन के फरिस्तो के
मै विवश हो सोचा
क्या रिस्तो के रंग इतने कच्चे थे ?
जो सह ना सके
सूरज की तेज धुप को
रिश्ते नाते सभी अन्तरंग
है सिर्फ कच्चे रंग
जो ख़ुशी के उजाले में चमकते है
पर गम के बरसात में धुल जाते है
योगी जीवन हम कहाँ जाते है
क्यों इन रिस्तो में खो जाते है?

यह कविता क्यों ? रिस्तो में इन्सान खुद को खो देता है जबकि रिश्ते सिर्फ कर्तव्य और फर्ज है बाकि कुछ भी नहीं कुछ है तो वो आप है सो अपने आप को खुद भी एक पहचान दे ज़िन्दगी खुल के जिए !
अरविन्द योगी @

जीवन कविता की हाला

श्रृष्टि के हर कण में कविता है
जीवन के हर क्षण में कविता है
ना कोई सरहद ना कोई बंधन
अवनि अम्बर -तल हर पल में कविता है !
ह्रदय की वेदना में
मन की चंचल चेतना में
जन्म के उल्लास में
मृत्यु के अवसाद में
संगीत के हर साज में
ह्रदय की हर आवाज में
छिपी एक कविता है !......
जीवन के आशा में परिभाषा में
मधुप्याला में मधुशाला में
बचपन की पाठशाला में
सुख दुःख की सरिता है
जीवन एक कविता है !.
जीवन रिश्तों की मधुबाला
भरती सुख दुःख की प्याला
पी लो जितनी पीनी हो
जीवन कविता की हाला
कविता है मधुशाला
पीता है केवल दिलवाला
योगी जीवन बीत ना जाये
कविता बन मधुबाला तुम्हे बुलाये !
जीवन कविता की हाला .

अरविन्द योगी यह कविता क्यों ? सम्पूर्ण जीवन ही एक कविता है जीवन की की कविता को पढ़े डूब जाये और खुद एक कविता बन जाये कविता ना केवल ह्रदय के तार खोलती है बल्कि ह्रदय के वेदना को चेतना में परिणित करती है ! कविता जीवन की मधुशाला है !

जिंदगी हर पल दर्द देती है

जिंदगी हर पल दर्द देती है
पर एक उम्मीद रहती है
रिश्ते टूट भी जाये मगर
उनमे अपनेपन की पीर रहती है
जिंदगी एक मुसाफिरखाना
हम है इसके मुसाफिर
तमाम रह चलकर भी
मंजिल कफीर रहती है
यूँ तो सबके हनथो में
किस्मत की लकीर होती है
पर जिनके हाँथ नहीं होते
उनकी भी अपनी तकदीर होती है
मंदिर में भगवान , मस्जिद में खुदा
बसते है इसका एहसास होता है
पर घर के आँगन में भी
भगवान् का एहसास होता है
ज़िन्दगी हर पल दर्द देती है
पर हर दर्द में छिपी एक मरहम होती है
जिन्दादिली से जीकर देखो जिंदगी
वरना धनवानों की जिन्दगी भी फ़कीर होती है
अमावश सी दर्द भरी ज़िन्दगी में
एक सुनहले सुबह की तस्वीर होती है
साख बेवफाई करे जिंदगी योगी
पर जिन्दगी से वफ़ा की उम्मीद रहती है
जिनके हाँथ नही होते उनकी भी तकदीर होती है !..........

यह कविता क्यों ? आश में जीने से बेहतर है कि निराशा में जिए क्योकि जिससे जितनी उम्मीद होती वो उम्मीद टूट जाती है और निराशा में किया हुआ कार्य परिणाम अवस्य देती है !

मानव में मानवपन भर दे

पूर्ण मानव कर दे
मै नहीं चाहता हे प्रभो !
तुम मुझपर असीम करुना कर दो
या रत्न राशी बहुमूल्य धातुओ से मेरा घर भर दो
मै तो कष्टों का आदि हूँ
जितना दोगे सब सह लूँगा
जिस देश वेश या हालत में
चाहोगे रह लूँगा
जाने या अनजाने में
मत कभी सहारा देना तुम
मेरी नैया डगमग हो तो
उसको भी मत खेना तुम
झेलूँगा संकट अनेक
तूफानों से खेलूंगा
धीरे धीरे अपनी नैया
खुद ही खे लूँगा मै
बस एक निवेदन है योगी
मानव में मानवपन भर दे
कुछ और नहीं
सिर्फ उसे पूर्ण मानव कर दे
सिर्फ उसे पूर्ण मानव कर दे !

यह कविता क्यों ? गर मानव में मानवता रहे तो ये धरती ही स्वर्ग है जिस स्वर्ग की महिमा के लिए भगवान भी मनुष्य का जन्म लेते है ! हर मनुष्य स्वयं में अनंत है जिसकी महिमा भी अपार है !
अरविन्द योगी

माँ शारदे की वरद पुत्री मै वीणा हूँ

सरगम से निकली संगीत की साज
ह्रदय से निकली बुलंद आवाज
मदुह्रातम राग और रागनिया
जब वीणा सुरों पर छेड़ती है
कुछ इस कदर आबोहवा पर
फ़िदा हो जाती है ज़िन्दगी
चंचल तितलियों की तरह
हवा से बातें कर
सरहद की दीवार फ़ना हो जाती है
वीणा के तरकश में न जाने कितने ही तीर होते है
जो हर साज पे झंकृत होते है
भले संगीतकार फ़कीर होते है
पर वीणा के संगीत को
ना कोई देश ना कोई वेश
या कोई कल्पना विशेष
या राग विद्वेष चाहिए
मस्त हवाओं की आवाज है वीणा
वीणा को बस साज चाहिए
मन के हवाओं को बस
एक आगाज चाहिए
मै सरगम के साज से उपजी
माँ शारदे की वरद पुत्री
मै वीणा हूँ मै वीणा हूँ

श्रीदे समर्पित वीणा श्रीवास्तव जी
अरविन्द योगी @

हर रात कुछ कहती है

हर रात कुछ कहती है
जब चुप के चाँद बादलों से
आँख मिचोली कराती है
जब चाँद चकोरी चोरी चोरी
नए सपनो को बुनती है
शशि कब आएगी तारो से पुछा कराती है
बेरहम तारे भी बादलों की जड़ में छिप जाते है
क्या वो शरमाते है
पर दिल में मचाते सपने अक्सर
शोर मचाते है
क्योकि हर रात कुछ कहती है -------
सात रंग के सपनो वाली
हर धुन पर सजाने वाली
हर राग में बजने वाली
हर सितम को सहने वाली
दर्द के सेहरा में तपने वाली
मुस्कराकर दर्द को कहने वाली
सर पटकती शोर करती तन्हाई
मद्धम मद्धम चलती पुरवाई
ने है आश जगाई कि
हर रात कुछ कहती है !------------
हरित त्रिन कि नोकों पर
ओश कि बूंदें जब अलसाई
किसी कि याद में बैठी तन्हाई
जब आँखों में आंसू लाई
मुस्कराकर चाँद कहा
मुझको भी तू देख यहाँ
इस छणिक चाँदनी रात में भी
मेरा दर्द भी क्या कम भला
रोशनी कि उम्मीदों ने अक्सर
वक़्त कि साजिश से मुझे छला
सुबह हुई मेरा वक़्त गुजरा
अलसाई ओस कि बूंदों पर
जब सूर्य रश्मि बिखरा
रात कि खुमारी का मौषम उतरा
जाते जाते यही कहा
हर रात कुछ कहती है !---------------------
दुःख के बाद सुख , सुख के बाद दुःख
इनके बीच ही चलती जीवन धारा
पर ना जीवन कभी सुख दुःख से हारा
स्वप्न जाल को बुनने वाली
हर रात कुछ कहती है
जीवन जिसको सुनती है
एकांत और निशब्द चुपचाप
हर रात कुछ कहती है !----------------

यह कविता क्यों ? हर रात खुद मे एक नए रात कि कहानी लिखती है! जिंदगी एक रात है जिसमे ना जाने कितने ख्वाब है जो मिल गया अपना है जो छूट गया सपना है ! अरविन्द योगी

जो रो कर जग में आता है

कल्पनाओ के मंदिर में
सपनो का पुजारी
भावनाओ के कोमल पंखुड़ियों से
उम्मीदों के फूल खिलाता है
कोई भला क्या समझ सकता है
एक कवि हकीकत के धरातल पर
न जाने कितने कष्ट उठता है
पर अपनी आंसुओ में डूबी
गहरी मुस्कराहट से जाने कितनो को हँसता है
जो सामने तो मुस्कराता है
पर तन्हाई में आंसू बहाता है
कहाँ कोई कवि के ह्रदय की वेदना को
संवेदना दे पाता है
क्यों कोई कवि पागल कहलाता है
जो भावनाओ का बादल बन जाता है
वही कवि और कविता को समझ पाता है
हर कोई इतिहास दुहराता है
हर युग में कवि
समाज का दर्पण बन जाता है
जीवन का समर्पण कहलाता है
जो रो कर जग में आता है
पर हँसता हुआ योगी बन जाता है

                अरविन्द योगी

दर्द हमेशा गुमनाम होता है

दर्द जिंदगी में वो फरिस्ते होते है
जिनसे जुड़े हर रिश्ते होते है
हर रिश्ते का एक नाम होता है
पर दिल में रहकर भी
दर्द हमेशा गुमनाम होता है
ख़ुशी ज़िन्दगी में कुछ खास होता है
पर दर्द में ही ज़िन्दगी का एहसास होता है

दर्द ने प्यार को खींच के निकला

एक बार सारी एहसासों ने निश्चय किया कि छुपन छुपाई खेलेंगे /
दर्द ने गिनती शुरू कर दी और एहसास छुप गए
झूठ पेड़ के पीछे छिपा और प्यार गुलाब कि झाड़ियों के पीछे
सब पकड़े गएँ सिवाय प्यार के
ये देख नफ़रत दर्द को बता दिया कि प्यार कहाँ छिपा है
दर्द ने प्यार को खींच के निकला तो
काटो कि वजह से प्यार कि आँखे ख़राब हो गईं
और प्यार अँधा हो गया ये देख इस्वर ने
दर्द को सजा सुनाई कि
उसे जिंदगी भर प्यार के साथ रहना पड़ेगा
तभी से प्यार अँधा है और जहाँ भी जाता है
दर्द देता है ! अरविन्द योगी

जो कलम की कोख में आंशुओ को ढोता है

जो कलम की कोख में आंशुओ को ढोता है
मेरी नजर में वही कवि होता है
अंधेरो की आशा जीवन की परिभाषा
बस एक रवि होता है
काले अक्षरों में रौशनी की बात
कोमल कल्पनाये और भावनाओ का जजबात
बस एक कवि समझता है
रात की तन्हाई दर्द की पुरवाई
मिलन की रुसवाई और अपनों की जुदाई
जो कलम में ढोता है
मेरी नजर में वही कवि होता है !
हकीकत जिंदगी में गुलजार होता है
जब सपनों का व्यापार होता है
कोई कवि जब कल्पना को पलता है
दिल के दर्द को शब्दों में ढालता है
तब फूट पड़ती है एक कविता
जब अंत :ह्रदय में यादो का संचार होता है
दर्द में डूबी कविता का श्रींगार होता है !

                 अरविन्द योगी

भारत को रंगीन बनाऊंगा

मै रंगों का एक प्यार भरा बादल
बन सपनों का झंकार भरा पायल
आया हूँ बरसने सजाऊंगा हर सपने
पराये हो या अपने हर रंग लगाऊंगा
खुद रंग बन जाऊंगा सबको रंगीन बनाऊंगा
जो बचना चाहोगे रंगों से कहाँ जाओगे
डूब जाओगे इन रंगों में
रंगों की घटा बन बरस जाऊंगा
सबके दिलो में उतर जाऊंगा
मै रंगों का एक प्यार भरा बादल !

लाल रंग से सुहागन बनाऊंगा
पीले रंग से दोस्त बनाऊंगा
हरे रंग से जीना सिखाऊंगा
धानी रंग से चुंदरी रंग जाऊंगा
काले रंग से नजर बचाऊंगा
सिन्दूरी रंग से दुल्हन बनाऊंगा
गेरुए रंग से शांति लाऊंगा
और खुद सफ़ेद रंग में डूब
रंगहीन हो जाऊंगा संगीन हो जाऊंगा
जो रंगहीन है दीन है हीन है
साधन विहीन है फिर भी रंगीन है
उनमे प्यार का रंग सजाऊंगा
उन्हें रंगीन बनाऊंगा
योगी बन कुछ यूंही
अबकी होली मनाऊंगा
मै रंगों का एक प्यार भरा बादल
भारत को रंगीन बनाऊंगा !


  यह कविता क्यों ? देशप्रेम का रंग सभी रंगों में श्रेष्ठ होता है इसलिए अपने लिए नहीं देश के लिए होली खेले जिसमे कोई बंधन या पहचान का रंग नहीं होता बल्कि सब रंग एक संग होता है ! होली खेले उनके साथ जिनके संत कोई नहीं खेलता जी

वो समझ नहीं पाते

हम कह नहीं पाते
वो समझ नहीं पाते
न जाने क्या है
उनके इरादे ,
हमें तो याद है अपने वादे,
अपने पन की वो मीठी सी बाते ,
वो एहसासों की सौगाते ,
वो कह नहीं पाते
हम समझ नहीं पाते
अब भी उनकी आखों में मोहब्बत है
मेरे खुदा की मुझ पे रहमत है
अपने प्यार से जब दुनिया भी सहमत है
फिर कैसी ये उलझन है
क्यों बढती दिल की धरकन है
तुम कहो न कहो, मेरा दिल समझता ,
ग़र तुम नफरत करो
फिर क्यों बिन मेरे जलता है
अब तो समझो (योगी)
आपका दिल भी कुछ कहता है !

यह कविता क्यों ? प्यार को शब्द नहीं होते और प्यार निःशब्द फिर भी खुद में एक शब्द है !

क्यों पागल कवि आंसू बहा रहा था ?

चाँद जब चांदनी रात में
फिजा की हर बात में
शबनम बरसा रहा था
दर्द का भवंर गहरा रहा था
कोई पागल कवि आंसू बहा रहा था !

जब जिंदगी प्यार का संसार था
प्यार पर प्यार का अधिकार था
प्यार नफरत का प्रतिकार था
कोई पागल कवि कुछ गा रहा था
कल्पनाओं के बीज से
प्यार के फूल खिला रहा था
बिछड़ों को मिला रहा था
कुछ सपना सजा रहा था
गैरों को अपना बना रहा था
कोई पागल कवि आंसू बहा रहा था !

जब नफरत का बदल छा रहा था
वो प्यार का काजल लगा रहा था
कल आज और फिर नए कल में
क्यों बदल जाते हैं लोग ?
कोई पागल कवि खुद को यही समझा रहा था
मुस्कराहटों में योगी आंसू छिपा रहा था
क्यों पागल कवि आंसू बहा रहा था ?
                                                     (अरविन्द योगी)


यह कविता क्यों ?कल्पनाये सपनों को जन्म देती हैं सपने लोगो से जुडाव करती हैं और बदलाव से कल्पना और सपना दोनों ही आधारहीन हो जाते है सच कल्पनाओ और सपनों का कोई आधार होना चाहिए !

जो सपने सोने न दें

उन्नत शिखर से गिर कर भी जो हँसते है
नए शिखर की तलाश में
कदम भी उन्ही के चलते है
पूर्व निर्धारित कुछ भी नहीं होता
अतीतत की मुश्किलों से ही
कल के भविष्य के रस्ते निकलते है
मंजिल भी उन्ही को मिलती है
जिनके सपनो में जान होती है
पंख से कुछ नहीं होता
हौसलों से उडान होती है
रात में देखे सपनों की क्या पहचान होती है
जो सपने सोने न दें उन्ही सपनों में जान होती है


                                         अरविन्द योगी

सपना वो है जो सोने ना दे !

जिंदगी एक रात है इसमें ना जाने कितने ख्वाब है
जो मिल गया वो अपना है जो खो गया वो सपना है
इन्सान कल्पनाओ के मंदिर में सपनो का पुजारी है
जिसे बस सपनों की बीमारी है जो कर्म से भिखारी है
सपना वो नहीं जो नीद में आये दिल में झूठा उम्मीद जगाये
सपना वो है जो सोने ना दे !
जीवन में कभी रोने ना दे !
भाग्य भरोसे कुछ होता नहीं जब इन्सान कर्मपथ खोता नहीं
समस्याओं से लड़ने से ही उनके हल निकलते है
मंजिल भी उनके पीछे चलती है
जिन सपनों की अपनी पहचान होती है
कल्पनाओं से कुछ नहीं होता आधार से उडान होती है
तभी जिंदगी एक तूफ़ान होती है
तूफ़ान कभी सोता नहीं कल्पनाओ में खोता नहीं
भले ही कल्पनाओ से सपनो की शुरुआत होती है
पर सपने तो हर पल नीद में भी एक तूफ़ान होती है
सपना वो है , जो सोने ना दे , जीवन में कभी रोने ना दे !

 अरविन्द योगी २४/०३/२०११
यह कविता क्यों ? सपने का आधार कल्पना है पर कल्पना का आधार मन का विस्वाश है जिसके मन में लक्ष्य के लिए मजबूत विस्वाश होता है वो हर पल कर्मपथ पर चलता रहता है वो सोते हुए भी जागता है!

कुछ मुस्कराते हुए चेहरे

कुछ मुस्कराते हुए चेहरे
जिंदगी की तनहाइयों में
रंग भर जाते है
बेनूर हो फिजा में
हम भूल जाते हैं
अपनी गम भरी जिंदगी की
हर खामोश गुलिस्ता को
आँखों के मुंडेरों से
टपकते हुए बोझिल शबनम
जब दिल का दर्द बढ़ाते है
हम मुस्कराते हुए चेहरे के
अनजाने से तस्वीर को
अपनी कल्पना की कैनवाश पर
बड़े प्यार से सजाते है
और बन जाता है
कोई मुस्कराता हुआ चेहरा कब अपना
मेरा दिल मुस्करा उठता है
अपने नसीब के तहरीर पर
क्या डाव खेला खुदा ने मेरे जैसे फ़कीर पर
मै मुस्करा तो सकता हूँ
पर मुस्कान होंठो को छू कर
हौले से चले जाते हैं
*योगी* मन क्यों चले जाते हैं ?
क्यों हम मुस्कराते हुए चेहरे पे मरे जाते है !

यह कविता क्यों ? जरुरी नहीं कोई मुस्कराने का अवसर आपको जिन्दगी भर के लिए मिला हो क्या पता किसी मुस्कराहट के पीछे कितना दर्द छिपा हो ! अरविन्द योगी
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