Monday 11 April 2011

क्या पाया -क्या छूट गया

क्या पाया -क्या छूट गया
क्या पाया क्या छूट गया
बीता लम्हा पूछ गया
कल तक हमसे खुश था जो
जाने क्यों अब रूठ गया वो
नीले आसमान से टपकी बूँद सोंधी माटी सी उसकी वजूद
हवाओ में बहकते उसके सुर
गीत मेरे और उसके सुर
यादो की फिजा में पनघट की दिशा में
आज भी पंछी बन गुनगुनाते है
हवाओ में बहकते उसके सुर !
यादो की झील में , सितारे भी तैरते हैं ,
पंछी भी पानी पीते है
बदल भी उतरते है
और उनकी छवि फूलो में मुस्काती है
योगी मन गीत सजाते है
उन यादो की हवा में चलते चले जाते है
पर हकीकत के बादल ,
योगी मन में प्रश्न छोड़ जाते है ,
क्या पाया क्या छूट गया,
कौन खुश है योगी से
कौन है जो रूठ गया !
अरविन्द योगी

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