निःशब्द चुपचाप
एक आवाज आती है
सन्नाटे से निःशब्द चुपचाप
शायद कुछ कहना चाहती है
चांदनी रात चुपचाप
वक़्त गुजरता जाये चुपचाप
क्या कर सकते हो आप
सुबह से शाम
और शाम से फिर रात आये चुपचाप
दर्द की काली घटा
छा जाये चुपचाप
आसमान शबनम टपकाए
अवनि से चुपचाप
दर्द की तन्हाई में
कटती हर रात चुपचाप
सुनहला सुबह लाये
नए स्वप्न अपने साथ
चले योगी जिंदगी के साथ
चले जैसे ज़िन्दगी चुपचाप !
यह कविता क्यों ? सन्नाटा भी स्वयं एक एक आवाज है ज़िन्दगी की धुन पे बजने वाला मधुर साज है !
अरविन्द योगी
एक आवाज आती है
सन्नाटे से निःशब्द चुपचाप
शायद कुछ कहना चाहती है
चांदनी रात चुपचाप
वक़्त गुजरता जाये चुपचाप
क्या कर सकते हो आप
सुबह से शाम
और शाम से फिर रात आये चुपचाप
दर्द की काली घटा
छा जाये चुपचाप
आसमान शबनम टपकाए
अवनि से चुपचाप
दर्द की तन्हाई में
कटती हर रात चुपचाप
सुनहला सुबह लाये
नए स्वप्न अपने साथ
चले योगी जिंदगी के साथ
चले जैसे ज़िन्दगी चुपचाप !
यह कविता क्यों ? सन्नाटा भी स्वयं एक एक आवाज है ज़िन्दगी की धुन पे बजने वाला मधुर साज है !
अरविन्द योगी
No comments:
Post a Comment