Monday 28 March 2011

I LOVE MY INDIA

उसके दिए जख्म आज भी हरे है
दिल में एक कसक और आँखों में आंसू
आँखों से मन के घावो तक भरे है
उसके दिए जख्म आज भी हरे है
ना दिल में कोई फरियाद है
न सपनो की कोई सौगात है
बस भरी उसकी याद है
उसके दिए जख्म आज भी हरे है !

वो उनसे पहली मुलाकात
वो प्यार की मीठी सी बात
वो उनका पलट कर मुस्कराना
हौले - हौले से शर्र्माना
और निगाहें मिलते ही
मोरनी सा बल खाकर इठलाना
उसके दिए जख्म आज भी हरे है !

वो इंतजार के दिन
दिले इकरार के दिन
ना जाने कब दिल में वो बस गए
बिना कुछ कहे सब कुछ कह गए
वो मौषम की खुमारी
उनकी जुकाम की बीमारी
और बच्चो सी भोली भोली मुस्कान
सब याद है सब याद है *योगी *
उसके दिए जख्म आज भी हरे है !
       यह कविता क्यों ? प्यार एक भोली सी कल्पना है जिसका हकीकत बहुत ही रंगीन भी है और संगीन भी है !
अरविन्द योगी ०२/०२/२००९

जी रहे है लोग कैसे

जी रहे है लोग कैसे
जी रहे है लोग कैसे
आज के वातावरण में
सभ्यता की मांग सुनी
कोयले सर धुन रही है
बैठ कौवों की शरण में
घोर कलयुग है की दोनों
राम रावन एक से है
लक्ष्म्नो का हाँथ रहता
आजकल सीता हरण में
शब्द निरर्थक बन चुके है
अर्थ घोर अन्रर्थ करते
संधि कम विग्रह अधिक है
जिंदगी के व्याकरण में
झांकता है क्यों अँधेरा
सूर्य की पहली किरण में !
जी रहे है लोग कैसे
आज के वातावरण में !

             यह कविता क्यों ? आज जीवन का अर्थ ही निरर्थक बन गया है हर जगह विग्रह फैला हुआ है !
अरविन्द योगी

Saturday 26 March 2011

सजने लगी सपनो की बारात

अनोखी रात
सजने लगी सपनो की बारात
बढ़ने लगी अपनों की तादात
कहने लगी जिंदगी कुछ खाश
आने लगी अनोखी रात !
ढक गए शबनम से पात
कह गए हमदम से बात
सह गए हम तन्हा रात
रह गए हमदम से बात
ना आई अबतक अनोखी रात !
जिंदगी साधना का योग है
कल्पना का प्रयोग है स्नेह का वियोग है
स्वप्न का संयोग है
कभी तो आएगी अनोखी रात !
एक अवनि एक अम्बर
एक ही तल सबका बल
कल कल में बीते पल
फिर ना आये बीता पल
गुजर जाए जो जीवन का पल
तनहा योगी है अनोखी रात
यह कविता क्यों ? आने वाला पल सुन्दर होगा यह सोचना छोड़ इस पल को जिए क्योकि ये पल फिर नहीं आएगा जो इस पल को जी सकता है वही आने वाले पल में भी खुश रह सकता है! अरविन्द योगी

मै कोई ख्वाब नहीं

मै कोई ख्वाब नहीं
जो टूटकर बिखर जाऊंगा
मै तो वो हकीकत का आइना हूँ
जो हर नजर और नजरो में नजर आऊंगा
मै कोई प्रेमी नहीं जो किसी के प्यार में
खुद को मिटाऊंगा
मै तो प्यार की घटा हूँ
जो जीवन आँगन में बरस जाऊँगा
मै कोई कहानी नहीं
जो सिर्फ किताबो में छप जाऊंगा
मै वो वर्तमान हूँ जो
सुनहले भविष्य की राह बनाऊंगा
मै वो फूल नहीं जो बाज़ार में बिक जाऊंगा
मै वो कली हूँ जो जीवन बगिया महकाऊंगा
मै कोई आंसू का बूँद नहीं
जो आँखों से टपक जाऊँगा
मै वो आँखे हूँ जो आंसुओ को भी
ख़ुशी का तरन्नुम बनाऊंगा
मै कीचड में खिला वो अरविन्द हूँ
जो धरती को स्वर्ग बनाऊंगा
मुझे याद करोगे दुनिया वालो
जब तुमसे दूर बहुत दूर चला जाऊंगा
मै कोई नदिया की धार नहीं
जो सागर में खो जाऊंगा
मै वो किनारा हूँ
जो जीवन नदिया सा बहता जाऊँगा
मै वो कलमकार नहीं
जो वक़्त के हांथो बिक जाऊंगा
मै वो कास्तकार हूँ
जो काले अक्षरों में रोशनी की बात लिख जाऊंगा
मै कोई पत्थर की मूरत नहीं
मै कोई रेत का महल नहीं
जो तूफ़ान में ढह जाऊंगा
मै मजबूत इरादों का वो चट्टान हूँ
जो हरपल तूफ़ान से तकराऊंगा
मै वो आशिक नहीं
जो किसी शोख की जुल्फों में खो जाऊँगा
मै वो जुल्फकार हूँ
जो वक्क्त की जुल्फों को भी सुलझाऊंगा
मै कोई चिंगारी नहीं
जो किसी चिता को जलाऊंगा
मै तो वो आग हूँ
जो मुर्दों को जीना सिखाऊंगा
मै कोई दर्द नहीं
जो किसी के दिल को जलाऊंगा
मै तो वो याद हूँ
जो ना दिल से जाऊँगा और ना दिल का हो पाउँगा
मै दर्देदिल अरविन्द हूँ दर्द ही मेरी पहचान है
सच कहूं तो दर्द ही अरविन्द ही दर्द की जान है
पर ज़िन्दगी की आखिरी बारात में भी
जग से हँसता हुआ जाऊंगा
पर धरती को स्वर्ग बनाऊंगा
क्योकि मै अरविन्द हूँ !
                                                मै अरविन्द हूँ !

यह कविता क्यों ? मै अरविन्द हूँ क्योकि मै कीचड में खिला हूँ फिर भी ब्रम्ह के शीश पर शोभायमान हूँ मै छोटा सा इन्सान हूँ पर इन्सान में भी भगवन को देखता हूँ खुद के लिए दर्द पर सबकी ख़ुशी की महत्वाकांक्षा है मेरी
अरविन्द योगी

मै तो एक पागल कवि हूँ

क्या फर्क पड़ता है
मै तो एक पागल कवि हूँ
तम को काटता रवि हूँ
कौन किसलिए जीता है
कौन किसलिए पीता है
ज़िन्दगी तो सीता है
कर्मो की गीता है
भाग्य विपरीता है
यहाँ तो हर कोई
बस अपने लिए जीता है
मै तो राम की सीता हूँ
गीतों की गीता हूँ
पर मै तो एक पागल कवि हूँ !------------
मस्जिद का मौलवी
मंदिर का पुजारी हूँ
भाग्य का भिखारी हूँ
ना कोई अधिकार मेरा
कर्तव्य है संसार मेरा
जीवन है उपहार मेरा
अभिन्दन है प्यार तेरा
पर मै तो एक पागल कवि हूँ
तम को काटता रवि हूँ
मै तो एक कवि हूँ !

यह कविता क्यों ? मुझे प्रसन्नता है की मै एक कवि हूँ कम से कम समाज में दर्पण लिए फिरता हूँ
अरविन्द योगी

आज शिव की रात है

आज शिव की रात है
सपनो की सौगात है
शिव भोले का द्वार है
महिमा अपरम्पार है
सच्चे मन से जो पूजे
उसका बेडा पार है
सबका ही उद्धार है
आज शिव की रात है !-----------
भोले की बारात है
प्यार की सौगात है
खुशियों की बरसात है
भक्तो की अरदास है
आज शिव की रात है !-----
सच्चे मन से जो पूजे
उसका बेडा पार है
भोले सबके साथ है
पार्वती भी साथ है
फिर रोने की क्या बात है
मन क्यों तेरा उदास है
शिव जी तेरे पास है
डरने की क्या बात है
आज शिव की रात है
सच्चे मन से जो पूजे
उसका बेडा पार है
गंगा मां की धार है
भोलेनाथ का प्यार है
लीला अपरम्पार है
भक्तों का उद्धार है
जीवन का कल्याण है
हर शिव भक्त महान है
आज शिव की रात है
भोले का संसार है
सच्चे मन से जो पूजे
सबका बेडा पार है !
अरविन्द योगी - श्रीदे समर्पित बाबा भोले नाथ

नोकरी करने के कुछ नुस्खे :

१) बने रहो पगले , काम करेंगे अगले !!!!

२)काम से रहो गुल , तनख्वाह पाओ फुल !!!!

३)मत लो टेंशन वरना परिवार पायेगा पेंशन !!!!

४)काम से डरो नहीं और काम को करो नहीं !!!!

५) काम करो या ना करो , काम की फिक्र जरुर करो;
और फिक्र करो या ना करो पर उसका जिक्र जरुर करो !!!!

.......जनहित में जारी ............ ....
ARVIND YOGI

तेरी तन्हाई की बरसात में

गुजरा हूँ तेरे प्यार में उस मुकाम से
  
प्यार सा हो गया है प्यार के नाम से
जब तुम थे मेरे आँखों के सामने
न कुछ कह सका मै
मदहोश थे तेरे अदाओं के आईने
मेरे एहसास में तुम थे
जिंदगी की हर आश तुम थे
जब भी तनहा रहा
तन्हाई की बरसात में तुम थे
ऐसा पहली बार हुआ था
दिल में मीठा दर्द हुआ था
दिल मेरा बन पतंग
तेरी गलियों में उड़ता था
और तुझे देख कटकर
तेरे दामन में गिरता था
ना जाने क्यों तमसे प्यार किया
तेरी तन्हाई की बरसात में
योगी जीवन जिया
तेरी यादो ने क्या था
और मुझे क्या किया ?

प्यार एक बरसात है जो भींग सकता है वो ही जाने की प्यार की बुँदे कैसी होती है
अरविन्द योगी @

रिस्तो के रंग

रिस्तो के रंग
ज़िन्दगी के कैनवाश पर
हमने एक चित्र खीचा था
चित्र खीचा था एक नीली सी झील का
चित्र खीचा था मादक समीर का
चित्र खीचा था रिस्तो की जंजीर का
चित्र खीचा था उम्मीदों की तस्वीर का
एक प्यारी सी परी का
दर्द भरी दोपहरी का
कुलांच भरती हिरणी का
और इस झील में
मै जी भर नहाया था
हंसा मुस्कराया था
रुई से बर्फीले पथ पर
ज़िन्दगी के हर पग पर
नहीं फिसले मेरे पग
पर सूरज की सात घोड़ो के
तेज टापों ने
छितरा छितरा डाला मेरा रंगीन कैनवाश
थकी हारी नजरो से जब मैंने
कैनवाश को टटोला
तो सभी रंग गायब थे
गहरे से रिस्तो के
मन के फरिस्तो के
मै विवश हो सोचा
क्या रिस्तो के रंग इतने कच्चे थे ?
जो सह ना सके
सूरज की तेज धुप को
रिश्ते नाते सभी अन्तरंग
है सिर्फ कच्चे रंग
जो ख़ुशी के उजाले में चमकते है
पर गम के बरसात में धुल जाते है
योगी जीवन हम कहाँ जाते है
क्यों इन रिस्तो में खो जाते है?

यह कविता क्यों ? रिस्तो में इन्सान खुद को खो देता है जबकि रिश्ते सिर्फ कर्तव्य और फर्ज है बाकि कुछ भी नहीं कुछ है तो वो आप है सो अपने आप को खुद भी एक पहचान दे ज़िन्दगी खुल के जिए !
अरविन्द योगी @

जीवन कविता की हाला

श्रृष्टि के हर कण में कविता है
जीवन के हर क्षण में कविता है
ना कोई सरहद ना कोई बंधन
अवनि अम्बर -तल हर पल में कविता है !
ह्रदय की वेदना में
मन की चंचल चेतना में
जन्म के उल्लास में
मृत्यु के अवसाद में
संगीत के हर साज में
ह्रदय की हर आवाज में
छिपी एक कविता है !......
जीवन के आशा में परिभाषा में
मधुप्याला में मधुशाला में
बचपन की पाठशाला में
सुख दुःख की सरिता है
जीवन एक कविता है !.
जीवन रिश्तों की मधुबाला
भरती सुख दुःख की प्याला
पी लो जितनी पीनी हो
जीवन कविता की हाला
कविता है मधुशाला
पीता है केवल दिलवाला
योगी जीवन बीत ना जाये
कविता बन मधुबाला तुम्हे बुलाये !
जीवन कविता की हाला .

अरविन्द योगी यह कविता क्यों ? सम्पूर्ण जीवन ही एक कविता है जीवन की की कविता को पढ़े डूब जाये और खुद एक कविता बन जाये कविता ना केवल ह्रदय के तार खोलती है बल्कि ह्रदय के वेदना को चेतना में परिणित करती है ! कविता जीवन की मधुशाला है !

जिंदगी हर पल दर्द देती है

जिंदगी हर पल दर्द देती है
पर एक उम्मीद रहती है
रिश्ते टूट भी जाये मगर
उनमे अपनेपन की पीर रहती है
जिंदगी एक मुसाफिरखाना
हम है इसके मुसाफिर
तमाम रह चलकर भी
मंजिल कफीर रहती है
यूँ तो सबके हनथो में
किस्मत की लकीर होती है
पर जिनके हाँथ नहीं होते
उनकी भी अपनी तकदीर होती है
मंदिर में भगवान , मस्जिद में खुदा
बसते है इसका एहसास होता है
पर घर के आँगन में भी
भगवान् का एहसास होता है
ज़िन्दगी हर पल दर्द देती है
पर हर दर्द में छिपी एक मरहम होती है
जिन्दादिली से जीकर देखो जिंदगी
वरना धनवानों की जिन्दगी भी फ़कीर होती है
अमावश सी दर्द भरी ज़िन्दगी में
एक सुनहले सुबह की तस्वीर होती है
साख बेवफाई करे जिंदगी योगी
पर जिन्दगी से वफ़ा की उम्मीद रहती है
जिनके हाँथ नही होते उनकी भी तकदीर होती है !..........

यह कविता क्यों ? आश में जीने से बेहतर है कि निराशा में जिए क्योकि जिससे जितनी उम्मीद होती वो उम्मीद टूट जाती है और निराशा में किया हुआ कार्य परिणाम अवस्य देती है !

मानव में मानवपन भर दे

पूर्ण मानव कर दे
मै नहीं चाहता हे प्रभो !
तुम मुझपर असीम करुना कर दो
या रत्न राशी बहुमूल्य धातुओ से मेरा घर भर दो
मै तो कष्टों का आदि हूँ
जितना दोगे सब सह लूँगा
जिस देश वेश या हालत में
चाहोगे रह लूँगा
जाने या अनजाने में
मत कभी सहारा देना तुम
मेरी नैया डगमग हो तो
उसको भी मत खेना तुम
झेलूँगा संकट अनेक
तूफानों से खेलूंगा
धीरे धीरे अपनी नैया
खुद ही खे लूँगा मै
बस एक निवेदन है योगी
मानव में मानवपन भर दे
कुछ और नहीं
सिर्फ उसे पूर्ण मानव कर दे
सिर्फ उसे पूर्ण मानव कर दे !

यह कविता क्यों ? गर मानव में मानवता रहे तो ये धरती ही स्वर्ग है जिस स्वर्ग की महिमा के लिए भगवान भी मनुष्य का जन्म लेते है ! हर मनुष्य स्वयं में अनंत है जिसकी महिमा भी अपार है !
अरविन्द योगी

माँ शारदे की वरद पुत्री मै वीणा हूँ

सरगम से निकली संगीत की साज
ह्रदय से निकली बुलंद आवाज
मदुह्रातम राग और रागनिया
जब वीणा सुरों पर छेड़ती है
कुछ इस कदर आबोहवा पर
फ़िदा हो जाती है ज़िन्दगी
चंचल तितलियों की तरह
हवा से बातें कर
सरहद की दीवार फ़ना हो जाती है
वीणा के तरकश में न जाने कितने ही तीर होते है
जो हर साज पे झंकृत होते है
भले संगीतकार फ़कीर होते है
पर वीणा के संगीत को
ना कोई देश ना कोई वेश
या कोई कल्पना विशेष
या राग विद्वेष चाहिए
मस्त हवाओं की आवाज है वीणा
वीणा को बस साज चाहिए
मन के हवाओं को बस
एक आगाज चाहिए
मै सरगम के साज से उपजी
माँ शारदे की वरद पुत्री
मै वीणा हूँ मै वीणा हूँ

श्रीदे समर्पित वीणा श्रीवास्तव जी
अरविन्द योगी @

हर रात कुछ कहती है

हर रात कुछ कहती है
जब चुप के चाँद बादलों से
आँख मिचोली कराती है
जब चाँद चकोरी चोरी चोरी
नए सपनो को बुनती है
शशि कब आएगी तारो से पुछा कराती है
बेरहम तारे भी बादलों की जड़ में छिप जाते है
क्या वो शरमाते है
पर दिल में मचाते सपने अक्सर
शोर मचाते है
क्योकि हर रात कुछ कहती है -------
सात रंग के सपनो वाली
हर धुन पर सजाने वाली
हर राग में बजने वाली
हर सितम को सहने वाली
दर्द के सेहरा में तपने वाली
मुस्कराकर दर्द को कहने वाली
सर पटकती शोर करती तन्हाई
मद्धम मद्धम चलती पुरवाई
ने है आश जगाई कि
हर रात कुछ कहती है !------------
हरित त्रिन कि नोकों पर
ओश कि बूंदें जब अलसाई
किसी कि याद में बैठी तन्हाई
जब आँखों में आंसू लाई
मुस्कराकर चाँद कहा
मुझको भी तू देख यहाँ
इस छणिक चाँदनी रात में भी
मेरा दर्द भी क्या कम भला
रोशनी कि उम्मीदों ने अक्सर
वक़्त कि साजिश से मुझे छला
सुबह हुई मेरा वक़्त गुजरा
अलसाई ओस कि बूंदों पर
जब सूर्य रश्मि बिखरा
रात कि खुमारी का मौषम उतरा
जाते जाते यही कहा
हर रात कुछ कहती है !---------------------
दुःख के बाद सुख , सुख के बाद दुःख
इनके बीच ही चलती जीवन धारा
पर ना जीवन कभी सुख दुःख से हारा
स्वप्न जाल को बुनने वाली
हर रात कुछ कहती है
जीवन जिसको सुनती है
एकांत और निशब्द चुपचाप
हर रात कुछ कहती है !----------------

यह कविता क्यों ? हर रात खुद मे एक नए रात कि कहानी लिखती है! जिंदगी एक रात है जिसमे ना जाने कितने ख्वाब है जो मिल गया अपना है जो छूट गया सपना है ! अरविन्द योगी

जो रो कर जग में आता है

कल्पनाओ के मंदिर में
सपनो का पुजारी
भावनाओ के कोमल पंखुड़ियों से
उम्मीदों के फूल खिलाता है
कोई भला क्या समझ सकता है
एक कवि हकीकत के धरातल पर
न जाने कितने कष्ट उठता है
पर अपनी आंसुओ में डूबी
गहरी मुस्कराहट से जाने कितनो को हँसता है
जो सामने तो मुस्कराता है
पर तन्हाई में आंसू बहाता है
कहाँ कोई कवि के ह्रदय की वेदना को
संवेदना दे पाता है
क्यों कोई कवि पागल कहलाता है
जो भावनाओ का बादल बन जाता है
वही कवि और कविता को समझ पाता है
हर कोई इतिहास दुहराता है
हर युग में कवि
समाज का दर्पण बन जाता है
जीवन का समर्पण कहलाता है
जो रो कर जग में आता है
पर हँसता हुआ योगी बन जाता है

                अरविन्द योगी

दर्द हमेशा गुमनाम होता है

दर्द जिंदगी में वो फरिस्ते होते है
जिनसे जुड़े हर रिश्ते होते है
हर रिश्ते का एक नाम होता है
पर दिल में रहकर भी
दर्द हमेशा गुमनाम होता है
ख़ुशी ज़िन्दगी में कुछ खास होता है
पर दर्द में ही ज़िन्दगी का एहसास होता है

दर्द ने प्यार को खींच के निकला

एक बार सारी एहसासों ने निश्चय किया कि छुपन छुपाई खेलेंगे /
दर्द ने गिनती शुरू कर दी और एहसास छुप गए
झूठ पेड़ के पीछे छिपा और प्यार गुलाब कि झाड़ियों के पीछे
सब पकड़े गएँ सिवाय प्यार के
ये देख नफ़रत दर्द को बता दिया कि प्यार कहाँ छिपा है
दर्द ने प्यार को खींच के निकला तो
काटो कि वजह से प्यार कि आँखे ख़राब हो गईं
और प्यार अँधा हो गया ये देख इस्वर ने
दर्द को सजा सुनाई कि
उसे जिंदगी भर प्यार के साथ रहना पड़ेगा
तभी से प्यार अँधा है और जहाँ भी जाता है
दर्द देता है ! अरविन्द योगी

जो कलम की कोख में आंशुओ को ढोता है

जो कलम की कोख में आंशुओ को ढोता है
मेरी नजर में वही कवि होता है
अंधेरो की आशा जीवन की परिभाषा
बस एक रवि होता है
काले अक्षरों में रौशनी की बात
कोमल कल्पनाये और भावनाओ का जजबात
बस एक कवि समझता है
रात की तन्हाई दर्द की पुरवाई
मिलन की रुसवाई और अपनों की जुदाई
जो कलम में ढोता है
मेरी नजर में वही कवि होता है !
हकीकत जिंदगी में गुलजार होता है
जब सपनों का व्यापार होता है
कोई कवि जब कल्पना को पलता है
दिल के दर्द को शब्दों में ढालता है
तब फूट पड़ती है एक कविता
जब अंत :ह्रदय में यादो का संचार होता है
दर्द में डूबी कविता का श्रींगार होता है !

                 अरविन्द योगी

भारत को रंगीन बनाऊंगा

मै रंगों का एक प्यार भरा बादल
बन सपनों का झंकार भरा पायल
आया हूँ बरसने सजाऊंगा हर सपने
पराये हो या अपने हर रंग लगाऊंगा
खुद रंग बन जाऊंगा सबको रंगीन बनाऊंगा
जो बचना चाहोगे रंगों से कहाँ जाओगे
डूब जाओगे इन रंगों में
रंगों की घटा बन बरस जाऊंगा
सबके दिलो में उतर जाऊंगा
मै रंगों का एक प्यार भरा बादल !

लाल रंग से सुहागन बनाऊंगा
पीले रंग से दोस्त बनाऊंगा
हरे रंग से जीना सिखाऊंगा
धानी रंग से चुंदरी रंग जाऊंगा
काले रंग से नजर बचाऊंगा
सिन्दूरी रंग से दुल्हन बनाऊंगा
गेरुए रंग से शांति लाऊंगा
और खुद सफ़ेद रंग में डूब
रंगहीन हो जाऊंगा संगीन हो जाऊंगा
जो रंगहीन है दीन है हीन है
साधन विहीन है फिर भी रंगीन है
उनमे प्यार का रंग सजाऊंगा
उन्हें रंगीन बनाऊंगा
योगी बन कुछ यूंही
अबकी होली मनाऊंगा
मै रंगों का एक प्यार भरा बादल
भारत को रंगीन बनाऊंगा !


  यह कविता क्यों ? देशप्रेम का रंग सभी रंगों में श्रेष्ठ होता है इसलिए अपने लिए नहीं देश के लिए होली खेले जिसमे कोई बंधन या पहचान का रंग नहीं होता बल्कि सब रंग एक संग होता है ! होली खेले उनके साथ जिनके संत कोई नहीं खेलता जी

वो समझ नहीं पाते

हम कह नहीं पाते
वो समझ नहीं पाते
न जाने क्या है
उनके इरादे ,
हमें तो याद है अपने वादे,
अपने पन की वो मीठी सी बाते ,
वो एहसासों की सौगाते ,
वो कह नहीं पाते
हम समझ नहीं पाते
अब भी उनकी आखों में मोहब्बत है
मेरे खुदा की मुझ पे रहमत है
अपने प्यार से जब दुनिया भी सहमत है
फिर कैसी ये उलझन है
क्यों बढती दिल की धरकन है
तुम कहो न कहो, मेरा दिल समझता ,
ग़र तुम नफरत करो
फिर क्यों बिन मेरे जलता है
अब तो समझो (योगी)
आपका दिल भी कुछ कहता है !

यह कविता क्यों ? प्यार को शब्द नहीं होते और प्यार निःशब्द फिर भी खुद में एक शब्द है !

क्यों पागल कवि आंसू बहा रहा था ?

चाँद जब चांदनी रात में
फिजा की हर बात में
शबनम बरसा रहा था
दर्द का भवंर गहरा रहा था
कोई पागल कवि आंसू बहा रहा था !

जब जिंदगी प्यार का संसार था
प्यार पर प्यार का अधिकार था
प्यार नफरत का प्रतिकार था
कोई पागल कवि कुछ गा रहा था
कल्पनाओं के बीज से
प्यार के फूल खिला रहा था
बिछड़ों को मिला रहा था
कुछ सपना सजा रहा था
गैरों को अपना बना रहा था
कोई पागल कवि आंसू बहा रहा था !

जब नफरत का बदल छा रहा था
वो प्यार का काजल लगा रहा था
कल आज और फिर नए कल में
क्यों बदल जाते हैं लोग ?
कोई पागल कवि खुद को यही समझा रहा था
मुस्कराहटों में योगी आंसू छिपा रहा था
क्यों पागल कवि आंसू बहा रहा था ?
                                                     (अरविन्द योगी)


यह कविता क्यों ?कल्पनाये सपनों को जन्म देती हैं सपने लोगो से जुडाव करती हैं और बदलाव से कल्पना और सपना दोनों ही आधारहीन हो जाते है सच कल्पनाओ और सपनों का कोई आधार होना चाहिए !

जो सपने सोने न दें

उन्नत शिखर से गिर कर भी जो हँसते है
नए शिखर की तलाश में
कदम भी उन्ही के चलते है
पूर्व निर्धारित कुछ भी नहीं होता
अतीतत की मुश्किलों से ही
कल के भविष्य के रस्ते निकलते है
मंजिल भी उन्ही को मिलती है
जिनके सपनो में जान होती है
पंख से कुछ नहीं होता
हौसलों से उडान होती है
रात में देखे सपनों की क्या पहचान होती है
जो सपने सोने न दें उन्ही सपनों में जान होती है


                                         अरविन्द योगी

सपना वो है जो सोने ना दे !

जिंदगी एक रात है इसमें ना जाने कितने ख्वाब है
जो मिल गया वो अपना है जो खो गया वो सपना है
इन्सान कल्पनाओ के मंदिर में सपनो का पुजारी है
जिसे बस सपनों की बीमारी है जो कर्म से भिखारी है
सपना वो नहीं जो नीद में आये दिल में झूठा उम्मीद जगाये
सपना वो है जो सोने ना दे !
जीवन में कभी रोने ना दे !
भाग्य भरोसे कुछ होता नहीं जब इन्सान कर्मपथ खोता नहीं
समस्याओं से लड़ने से ही उनके हल निकलते है
मंजिल भी उनके पीछे चलती है
जिन सपनों की अपनी पहचान होती है
कल्पनाओं से कुछ नहीं होता आधार से उडान होती है
तभी जिंदगी एक तूफ़ान होती है
तूफ़ान कभी सोता नहीं कल्पनाओ में खोता नहीं
भले ही कल्पनाओ से सपनो की शुरुआत होती है
पर सपने तो हर पल नीद में भी एक तूफ़ान होती है
सपना वो है , जो सोने ना दे , जीवन में कभी रोने ना दे !

 अरविन्द योगी २४/०३/२०११
यह कविता क्यों ? सपने का आधार कल्पना है पर कल्पना का आधार मन का विस्वाश है जिसके मन में लक्ष्य के लिए मजबूत विस्वाश होता है वो हर पल कर्मपथ पर चलता रहता है वो सोते हुए भी जागता है!

कुछ मुस्कराते हुए चेहरे

कुछ मुस्कराते हुए चेहरे
जिंदगी की तनहाइयों में
रंग भर जाते है
बेनूर हो फिजा में
हम भूल जाते हैं
अपनी गम भरी जिंदगी की
हर खामोश गुलिस्ता को
आँखों के मुंडेरों से
टपकते हुए बोझिल शबनम
जब दिल का दर्द बढ़ाते है
हम मुस्कराते हुए चेहरे के
अनजाने से तस्वीर को
अपनी कल्पना की कैनवाश पर
बड़े प्यार से सजाते है
और बन जाता है
कोई मुस्कराता हुआ चेहरा कब अपना
मेरा दिल मुस्करा उठता है
अपने नसीब के तहरीर पर
क्या डाव खेला खुदा ने मेरे जैसे फ़कीर पर
मै मुस्करा तो सकता हूँ
पर मुस्कान होंठो को छू कर
हौले से चले जाते हैं
*योगी* मन क्यों चले जाते हैं ?
क्यों हम मुस्कराते हुए चेहरे पे मरे जाते है !

यह कविता क्यों ? जरुरी नहीं कोई मुस्कराने का अवसर आपको जिन्दगी भर के लिए मिला हो क्या पता किसी मुस्कराहट के पीछे कितना दर्द छिपा हो ! अरविन्द योगी
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