Saturday 26 March 2011

कुछ मुस्कराते हुए चेहरे

कुछ मुस्कराते हुए चेहरे
जिंदगी की तनहाइयों में
रंग भर जाते है
बेनूर हो फिजा में
हम भूल जाते हैं
अपनी गम भरी जिंदगी की
हर खामोश गुलिस्ता को
आँखों के मुंडेरों से
टपकते हुए बोझिल शबनम
जब दिल का दर्द बढ़ाते है
हम मुस्कराते हुए चेहरे के
अनजाने से तस्वीर को
अपनी कल्पना की कैनवाश पर
बड़े प्यार से सजाते है
और बन जाता है
कोई मुस्कराता हुआ चेहरा कब अपना
मेरा दिल मुस्करा उठता है
अपने नसीब के तहरीर पर
क्या डाव खेला खुदा ने मेरे जैसे फ़कीर पर
मै मुस्करा तो सकता हूँ
पर मुस्कान होंठो को छू कर
हौले से चले जाते हैं
*योगी* मन क्यों चले जाते हैं ?
क्यों हम मुस्कराते हुए चेहरे पे मरे जाते है !

यह कविता क्यों ? जरुरी नहीं कोई मुस्कराने का अवसर आपको जिन्दगी भर के लिए मिला हो क्या पता किसी मुस्कराहट के पीछे कितना दर्द छिपा हो ! अरविन्द योगी
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