नयनो की गहराई में
यादों की पुरवाई में
रिश्तों की रुसवाई में
अगन ये किसने लगायी है
दिल अपना प्रीत पराई है
कितना खारा जल होता है
नयनो की अमराई में !
मौन निमंत्रण ,मन का अर्पण
प्रेम समर्पण , तन आकर्षण
अभिलाषी जीवन ,प्राण का प्रण
स्मृतियों का कण -कण
बोझिल हो गिर जाता है
नयनो की गहराई से !
लाख छिपाएं ,कुछ कह ना पायें
मन को यादों का गरल पिलायें
भूल गएँ पर भूल ना पायें
बसंत आये ,पतझर जाये
बोझिल पलकों के अंचल से
दो बूँद यादों के गिर जाते हैं
नयनो की गहराई से !
प्यार रुकता कब है, दिल की दीवारों से
जीत चुका है धरा, अब क्षितिज पर खड़ा
प्यार से भरता नहीं ,मन का घड़ा
यादों का गागर ,प्यार का सागर
बन यादों का हवा , रहे हर पल जवां
बन घटा बरस जाती है
सदियों लम्बी प्यास बुझाती है
नयनो की गहराई में!
यह कविता क्यों ? नयनो की गहराई में सच कितना गहरा जल होता है ?
अरविन्द योगी
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