Wednesday 25 January 2012

नयनो की गहराई में

नयनो की गहराई में

यादों की पुरवाई में
रिश्तों की रुसवाई में
अगन ये किसने लगायी है
दिल अपना प्रीत पराई है
कितना खारा जल होता है
नयनो की अमराई में !

मौन निमंत्रण ,मन का अर्पण
प्रेम समर्पण , तन आकर्षण
अभिलाषी जीवन ,प्राण का प्रण
स्मृतियों का कण -कण
बोझिल हो गिर जाता है
नयनो की गहराई से !

लाख छिपाएं ,कुछ कह ना पायें
मन को यादों का गरल पिलायें
भूल गएँ पर भूल ना पायें
बसंत आये ,पतझर जाये
बोझिल पलकों के अंचल से
दो बूँद यादों के गिर जाते हैं
नयनो की गहराई से !

प्यार रुकता कब है, दिल की दीवारों से
जीत चुका है धरा, अब क्षितिज पर खड़ा
प्यार से भरता नहीं ,मन का घड़ा
यादों का गागर ,प्यार का सागर
बन यादों का हवा , रहे हर पल जवां
बन घटा बरस जाती है
सदियों लम्बी प्यास बुझाती है
नयनो की गहराई में!

यह कविता क्यों ? नयनो की गहराई में सच कितना गहरा जल होता है ?
अरविन्द योगी

क्या भारत यूँ ही गणतंत्रता मनायेगा ?

क्या भारत यूँ ही गणतंत्रता मनायेगा ?



एक छोटा सा नन्हा सा बच्चा

उम्र का बिलकुल कच्चा

हृदय का बिलकुल सच्चा

हाँथ में लिए देश का झंडा

किसी तरह नन्हे हांथो से

पकडे हुए कर्तव्य का डंडा

कर्म पथ पे पड़ा हुआ है !



बचपन से ही रोटी से

इस कदर जुदा हुआ है

तन मन गरीबी से जुड़ा हुआ है

बाप मदिरालय में, माँ शिवालय में

बहन कुछ बड़ी है जो

दुसरो का बर्तन मांजती है

हर पल सहारे का मुह ताकती है!



देश के संविधान में

ऊँचे आसमान में तिरंगा लहरेगा

कुछ सुविचार और सुन्दर भाषण

देश को समर्पित करेंगे हम

देश भक्ति अर्पित करेंगे हम

पर तिरंगा जिस जमीन पे खड़ा होगा

क्या वो मजबूत होगा ?



इस बचपन को रुलाते हुए

भूखे पेट जाने कितनो को सुलाते हुए

ये देश हर गणतंत्रता मनायेगा

अपनी झूठी शान दिखायेगा

और भारत का बचपन

यूँ ही भूखे पेट सो जायेगा

गर ये बचपन पेट के लिए

अपने देश का तिरंगा नही बेच पायेगा !

क्या भारत यूँ ही गणतंत्रता मनायेगा ?


आइये आगे बढे कुछ देश हित में करे

भारत का झंडा इन नन्हे से फहरावाएं

देश के इस भटकते बचपन को

सुन्दर भविष्य की दिशा दिखाएँ

योगी भारत का दुर्योग भगाएं?

यह कविता क्यों ? आज जब गणतंत्रता मनाये तो सोचें कि देश कहाँ है? इन गंदे राजनेताओं को इनके गंदे हांथो से तिरंगे को ना छूने दिया जाये बल्कि भारत के वीर सपूत बचपन जो पुरे वर्ष में बहादुरी का कार्य किये हों उन्हें देश का तिरंगा फहराने का अवसर दिया जाये जिससे भारत का बचपन तो जगता रहेगा! आप सोये या जागें पर आने वाला भारत का समाज जरूर जागेगा जय भारत ! अरविन्द योगी

Thursday 12 January 2012

ये है मुंबई मेरी जान

ये है मुंबई मेरी जान

कभी ना घटती जिसकी शान

हर पल बढती इसकी मान

हर जीवन में एक नई जान

हर दिन एक नई पहचान

ये है मुंबई मेरी जान !

यहाँ दौड़ती जिंदगी

ट्रैफिक से दिल्लगी करते लोग

वक़्त का समुचित सदुपयोग

यहाँ मिलता है भरपूर प्यार

जानवर हो या इन्सान

ये है मुंबई मेरी जान !

जमीन से आसमान तक

झोपडी से मकान तक

चाय से पकवान तक

शैतान से भगवान तक

यहाँ सब मिलते हैं महान

ये है मुंबई मेरी जान !

यहाँ खुली किताब खुली ज़िन्दगी

रंगीन सपने सब अपने

कोई आये कोई जाये

मिलती सबको कुछ सौगातें

इसकी निराली सब बातें

हर बातो में है बहुत जान

ये है मुंबई मेरी जान !

रात को दुल्हन सुबह को राजा

दिन बढ़ते बन जाये शहजादा

हम को बनता फिर चाँद आधा

पूरा करता अपना हर वादा

हर वादे में प्यार की शान

ये है मुंबई मेरी जान !

खुशियों की बारिश

देश का दिल है दिल

सबसे प्यारी प्रीत है

हर पल बजती संगीत है

हर सुबह एक नई पहचान

एक नई जान एक नई शान

ये है मुंबई मेरी जान

यह कविता क्यों ? देश के दिल मुंबई में दिल से जियें मुंबई का दिल बड़ा व्यावसायिक हो चूका है फिर भी यहाँ अपनों जानते हैं लोग प्यार से पहचानते हैं लोग

अरविन्द योगी १२/०१/१२ मुंबई प्रवास पर

Tuesday 3 January 2012

नई सुबह के नए उजाले

चमकते रहेंगे चाँद और तारे
नई सुबह के नए उजाले

जाने वाला पल जा रहा है
आने वाला कल आ रहा है
...
वक्त ने छेड़ी नव ताल है
नई सुबह नया साल है

सपनो का नया जहाँ है
उन्मुक्त नव उड़ान है

नव परिचय , नई पहचान है
नव गीत , नई गान है

नव प्रीत , नई रीत है
नव प्रेम ,नई जीत है

नव धार है जीवन की ,
नव बहार है मन की ,

नव उड़ान है, नई जान है
इस वर्ष की नई पहचान है !

यह कविता क्यों ? तारिख और वक़्त के बदलते हर झोंके, भला मन को नवबहारों में बहने से कैसर रोंकें ? स्वागत है नव वर्ष २०१२ नव उमंग नव जोश के साथं जय भारत
अरविन्द योगी