Thursday 29 December 2011

उजालों की कशिश वो समझती है

उजालों की कशिश वो समझती है

उजालों की कशिश वो समझती है
ज़िन्दगी जो अंधेरों में भटकती है !

हमसफ़र ना कोई ,ज़िन्दगी चलती है
सांसो में कमी उसकी हर पल खलती है !

काँटों पे चैन से सोती है ज़िन्दगी
शोलों पे हंसके चलती है ज़िन्दगी

कौन कहता ज़िन्दगी मरती है
मरके भी ज़िन्दगी याद रहती है!

रोशनी से तलबगार हर कोई यहाँ
अँधेरी रात भी बहुत कुछ कहती है

तुफानो से मुस्कराके ज़िन्दगी जो लडती है
अंधेरों में बन उम्मीद ज़िन्दगी वो जलती है !

प्रीत बन प्रियतम से प्रिय जो बिछदती है
प्यार की हर रीत के गीत वो समझती है !

विरह में प्यार के प्रीत जो भटकती है
योगी प्यार की रीत वो समझती है !

ज़िन्दगी जो अंधेरों से गुजरती है !
उजालों की कशिश वो समझती है !

यह रचना क्यों ? दूरियां भी जीना सिखाती हैं मजबूरियां लड़ना सिखाती हैं और जब मामला प्यार का हो फिर क्या कहने ?
अरविन्द योगी

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