Thursday 28 February 2013

यादों के शहर में 

तनहा दिल अपना लाया हूँ 
कुछ खोया हूँ कुछ पाया हूँ 
मौत तुझसे कब घबराया हूँ 
यादों ने बुलाया यादों को 
एक याद बनकर  आया हूँ 
यादों के शहर में !

उठाओ यादों के पत्थर मुझे मारो 
पत्थरों पर उन यादों को साधो 
यादों में उसके मरने से पहले 
उसका मुस्कराता मुखड़ा दिखा दो 
फिर मोहब्बत की सजा दो 
प्यार के पावन घर में 
यादों के शहर में !

चाहतों के पत्थर मुस्कराते रहें 
मेरे चाहने वाले मुझे बुलाते रहें 
चाहतों के पत्थर बरसाते रहें 
हम यादों की जुस्तजू में अक्सर 
यादों के पत्थर खाते रहें 
यादों के शहर में !

कितना अपनापन है यादों में 
जितना फासला है वादों में 
चाहतों की मीनारों से 
यादों की बरसात है 
याद जीवन के साथ हैं 
याद जीवन के बाद है 
जीवन के सफ़र में हम बस याद हैं 
यादों के शहर में !

यह रचना क्यों ? यादों के पत्थर जो चोंट देते हैं वो जखम नासूर हो जाते हैं ,यादें ना दिल से जाती हैं और नाही दिल की हो पति हैं बस दिल में रहकर दिल को तडपती हैं ,यादों के शहर में .....वन्देमातरम ......अरविन्द योगी 

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