Monday 11 April 2011

रेत की तरह फिसलती जिंदगी

रेत की तरह फिसलती जिंदगी
दर्द के सेहरा में कुछ इस तरह सिमटती गई ज़िन्दगी
हांथो से रेत तरह फिसलती गई ज़िन्दगी
कुछ मोती हाँथ लगे दिल में आश जगे
पर पथ्थरो से पहचान करती गई ज़िन्दगी
कुछ सपने हमे ले गए शहर की ओर
दिल में छाए आश घनघोर
पर मजबूरियों में कुछ इस तरह जकड़ती गई ज़िन्दगी
चाह कर भी न लौट सके हम अपनों की ओर
कारवां गुजरता रहा हम खड़े रहे एक ओर
हकीकत के भंवर में डुबोती गई ज़िन्दगी
अब तो योगी आशाओ में तैरते चले जाते है
देखते है किस मुकाम पे ले जाती है ज़िन्दगी 

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