Sunday 10 April 2011

एक नन्ही सी जान

एक नन्ही सी जान
छोटी सी पहचान
इतना बड़ा जहान
बस यादों का मचान
प्रारब्ध जीवन का
बस अंत श्मशान
हर सुबह हर शाम
मिट जाते कितने नाम
एक नन्ही सी जान
बिलकुल अनजान !

ना देख पायी
सुनहली धुप दोपहर की छाँव
मौत पसारे अपना पावं
आयी जीवन की शाम
बाकि रह गयी
बस दर्द की रात
जुबान ना कह सकी कोई बात
जीवन की कैसी सौगात
धरे रह गए सारे दावं
मिट गए सपने माटी के भाव
मौत पसारे अपना पावं
जीवन हर पल एक पड़ाव
मौत है सबका लक्ष्य पड़ाव
योगी एक नन्ही सी जान
बस इतनी सी पहचान !

यह कविता क्यों ?जिंदगी की तलहटी में कोई कितना भी हाँथ पावं मार ले मगर जीवन एक ना एक दिन मौत के आगोश में डूब कर परम शांति और बंधन मुक्ति को ही प्राप्त करती है ! अरविन्द योगी ११/०४/२०११

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