Saturday 9 April 2011

मृतक भोज

मृतक भोज

एक सामाजिक सोच
मृत आत्मा को क्या दे पाता संतोष
मन में विस्मित संकोच
जो जुड़ा है मन की गहराई से
यादों की पुरवाई से
क्या बढे है उससे
अब भी तन के रिश्ते
मन के रिश्ते
जो बन गए है दूसरी दुनिया के फरिस्ते
एक दावत की शाम
उस मृतक के नाम
आँखे नम है
उसकी यादों के गम है
बस मन के रिश्ते जोड़ लो
बाकि रिश्ते तोड़ दो
उसके बिन दुनिया देखो
मुस्करा कर गम पीना सीखो
मृतक भोज एक भ्रान्ति है
बस रोजी रोटी की
एक छोटी सी क्रांति है
योगी मन कहाँ शांति है
मृतक भोज भी अब अशांति है
यह कविता क्यों ? सामाजिक आडम्बर कभी शांति नहीं देते मन की श्रद्धा और समर्पण ही शांति का द्योतक है !
अरविन्द योगी १०/०४/२०११ 

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