Monday 11 April 2011

देखो!आज है बसंत नया

सूर्य की स्निग्ध रश्मियों में
हवा की चंचल परियों में
मन की अंचल लहरों में
जीवन के गावों शहरों में
रंग कोई भर गया
देखो! आज है बसंत नया -----------------------
फूलों में कलियों में
जीवन की गलियों में
महफ़िल की रंगलियों में
मंजिल की पहियों में
रंग कोई भर गया
देखो!आज है बसंत नया ----------------
चाँद में चकोर में
परिवर्तन की भोर में
हर्षोरुदन की शोर में
सूर्य के अघोर में
रंग कोई भर गया
देखो ! आज है बसंत नया ----------------
स्वदेश में विदेश में
जीवन के हर परिवेश में
मानवता के हर सन्देश में
विश्व के विशेष में
रंग कोई भर गया
देखो ! आज है बसंत नया -----------------
तितली से ख्वाबों में
यादों में इरादों में
प्रेम प्रणय के प्रवाहों में
प्रियतम की बाँहों में
मन की निगाहों में
रंग कोई भर गया
देखो ! आज है बसंत नया ---------------
जल में तल में भुज में बल में
प्यार की गजल में
कल से आज में और नए कल में
प्यार के जल में
प्रीत के तल में
ज्ञान के प्रकाश में
धरा से आकाश में
रंग कोई भर गया
देखो ! आज है बसंत नया -------------
योग में प्रयोग में
भोग में संयोग में
मनोयोगी की योग से
जीवन की वियोग में
कल्पना के प्रयोग में
संयोग में वियोग में
हर योगी की योग में
रंग कोई भर गया
देखो ! आज है बसंत नया --------------------
यह कविता क्यों ? खुद देखें कि कल , आज और आने वाले जीवन के कल में बसंत क्या था, क्या है और होगा
अरविन्द *योगी * 

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