Saturday 9 April 2011

सहारा चाहती है जिंदगी

सहारा चाहती है जिंदगी

आज गमे तूफान में
किनारा चाहती है जिंदगी
जहान में कहीं कोई अपना नहीं
मै हूँ और मेरी तनहाइयाँ
बीते कल की परछैयाँ

वफ़ा और रुशवैयां
दर्द की थपेड़ो में बहती
आंखो से मन की तनहाइयाँ
रिस्तो में बढती खाइयाँ
सपनो की अमरैयाँ
बचपन की लड़ाइयाँ
बस हर पल
फिर से जीने का बहाना चाहती है
किसी अपने का जीवन में
सहारा चाहती है जिंदगी
उसे अपना बनाना चाहती है जिंदगी !

यह कविता क्यों ? जिंदगी सिर्फ एक छोटी सी खुसी और छोटा गम है जो भी मिले दिल से लगा लो दर्द का प्यार से गहरा नाता है जहां दर्द नहीं वहां प्यार नहीं !
०१/०२/२०१० अरविन्द योगी

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