सहारा चाहती है जिंदगी
आज गमे तूफान में
किनारा चाहती है जिंदगी
जहान में कहीं कोई अपना नहीं
मै हूँ और मेरी तनहाइयाँ
बीते कल की परछैयाँ
वफ़ा और रुशवैयां
दर्द की थपेड़ो में बहती
आंखो से मन की तनहाइयाँ
रिस्तो में बढती खाइयाँ
सपनो की अमरैयाँ
बचपन की लड़ाइयाँ
बस हर पल
फिर से जीने का बहाना चाहती है
किसी अपने का जीवन में
सहारा चाहती है जिंदगी
उसे अपना बनाना चाहती है जिंदगी !
यह कविता क्यों ? जिंदगी सिर्फ एक छोटी सी खुसी और छोटा गम है जो भी मिले दिल से लगा लो दर्द का प्यार से गहरा नाता है जहां दर्द नहीं वहां प्यार नहीं !
०१/०२/२०१० अरविन्द योगी
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