बैठकर बनारस में , बनारस को देखा
बैठकर बनारस में , बनारस को देखा
रसमय रसो में डूबे, रासरस को देखा
न बनती न बिगडती , हर पल सजती
ना कुछ कहती फिर भी कुछ कहती
शाशिमय सुमधुर सुंदर चित्रलेखा
बैठकर बनारस में बनारस को देखा !
रंगों में डूबे हर रंगों को देखा
अंगों में डूबे हर अंगों को देखा
जीवन में डूबे हर संतों को देखा
जीवन से परे हर असंतों को देखा
जन्म से परे हर बंधन की रेखा
बनती बिगडती जीवन की रेखा
हर बंधन से हर मुक्ति को देखा
बैठकर बनारस में बनारस को देखा !
मिटटी में खोये सोने को देखा
कुछ पाने में कुछ खोने को देखा
हर हंसी में कुछ रोने को देखा
बचपन के मासूम सपने को देखा
आंसुओं में डूबे किसी अपने को देखा
शाशिमय दुल्हन में सजे गहने को देखा
बैठकर बनारस में बनारस को देखा !
पनघट पर उगते सूरज को देखा
लहरों पर डूबते किरणों को देखा
भवंर में लड़ते नावों को देखा
शहर में मरते गांवों को देखा
रातों में घाटों के लाशों को देखा
आगो में जलते आगों को देखा
बैठकर बनारस में बनारस को देखा !
मस्ती में डूबे मस्तो को देखा
गली में मुड़े रस्तों को देखा
लोगों से जुड़ते लोगों को देखा
योगों में सारे वियोगों को देखा
शक्ति में भक्ति ,भक्ति में शक्ति
सस्ती से सस्ती मस्ती से मस्ती
रिवाजों लिहाजों मिजाजों को देखा
बैठकर बनारस में बनारस को देखा !
यह कविता क्यों ? शिवमय बनारस में रसमय रसों की खान है ! बनारस मस्ती की वृन्दावन है ! जो हर प्राणी की मुक्तिवन है ! जहाँ जन्म भी मंगलकारी है एवम मृत्यु भी हितकारी है ! जहाँ जन्म से बंधन और बंधन से जन्म का क्रम अविरत है ! जो चराचर है अजर है अमर है बस शिवमय है !
अरविन्द योगी
बैठकर बनारस में , बनारस को देखा
रसमय रसो में डूबे, रासरस को देखा
न बनती न बिगडती , हर पल सजती
ना कुछ कहती फिर भी कुछ कहती
शाशिमय सुमधुर सुंदर चित्रलेखा
बैठकर बनारस में बनारस को देखा !
रंगों में डूबे हर रंगों को देखा
अंगों में डूबे हर अंगों को देखा
जीवन में डूबे हर संतों को देखा
जीवन से परे हर असंतों को देखा
जन्म से परे हर बंधन की रेखा
बनती बिगडती जीवन की रेखा
हर बंधन से हर मुक्ति को देखा
बैठकर बनारस में बनारस को देखा !
मिटटी में खोये सोने को देखा
कुछ पाने में कुछ खोने को देखा
हर हंसी में कुछ रोने को देखा
बचपन के मासूम सपने को देखा
आंसुओं में डूबे किसी अपने को देखा
शाशिमय दुल्हन में सजे गहने को देखा
बैठकर बनारस में बनारस को देखा !
पनघट पर उगते सूरज को देखा
लहरों पर डूबते किरणों को देखा
भवंर में लड़ते नावों को देखा
शहर में मरते गांवों को देखा
रातों में घाटों के लाशों को देखा
आगो में जलते आगों को देखा
बैठकर बनारस में बनारस को देखा !
मस्ती में डूबे मस्तो को देखा
गली में मुड़े रस्तों को देखा
लोगों से जुड़ते लोगों को देखा
योगों में सारे वियोगों को देखा
शक्ति में भक्ति ,भक्ति में शक्ति
सस्ती से सस्ती मस्ती से मस्ती
रिवाजों लिहाजों मिजाजों को देखा
बैठकर बनारस में बनारस को देखा !
यह कविता क्यों ? शिवमय बनारस में रसमय रसों की खान है ! बनारस मस्ती की वृन्दावन है ! जो हर प्राणी की मुक्तिवन है ! जहाँ जन्म भी मंगलकारी है एवम मृत्यु भी हितकारी है ! जहाँ जन्म से बंधन और बंधन से जन्म का क्रम अविरत है ! जो चराचर है अजर है अमर है बस शिवमय है !
अरविन्द योगी
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