जीवन जितना तुमसे प्यार
लाये उतना दर्दे बयार
जीवन कैसा एक व्यापार
यादों का सूना संसार
रिश्तों के ये सारे दांव
मिट जाते माटी के भाव
रह जाते बस दिल में घाव
दिग जाते अब मेरे पांव
जीवन जितना तुमसे प्यार !
कहाँ गए ममता के छाँव
भूल गए बचपन के भाव
मिलते गये जब जीवन के दांव
बढ़ते गए बस मेरे पांव
हर पल जीवन एक लगाव
पर खुद से कितना अलगाव
जीवन जितना तुमे प्यार !
आई जवानी बिता बचपन
जीवन खोता अपना तन मन
जब जीवन देखे बसंत पचपन
याद आये बस बचपन बचपन
जीवन जितना तुमे प्यार !
हाय रे जीवन हाय रे जीवन
जीवन तुझे प्यार किया
तेरा सबकुछ तुहे वार दिया
बोलो क्या मैंने पाप किया
पाप किया अपराध किया
जीवन जितना तुमे प्यार !
जीवन बहता एक बहाव
बस देता यादों के घाव
मौत है इसका एक पड़ाव
जीवन कितना तुझसे लगाव
छोड़ चूका मै दर्द के गाँव
यादों से है जन्मो का लगाव
जीवन जितना तुमे प्यार !
पल पल घटता जीवन का भाव
मौत पसारे चुपके चुपके अपने पांव
धरे रह गए सारे दांव
योगी करता शब्द व्यापार
मिथ्या जीवन मिथ्या संसार
मिट जाते सब माटी के भाव
हर रे जीवन हाय रे जीवन
कर ले जीवनदाता से प्यार
जो है सबका आधार है
जीवन तुमसे कितना प्यार
यह कविता क्यों ?
जीवन को कितना भी प्यार कीजिये लेकिन अंत में कुछ ज्यादा नहीं थोडा सा ही कम पड़ जाता है !
अरविन्द योगी १८/०४/२०११
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2 comments:
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