Tuesday 12 April 2011

कुत्ता और आदमी

कुत्ता और आदमी
एक आदमी रोटी बनाता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक आदमी रोटी से खेलता है
एक आदमी रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी सेकता है
और एक आदमी रोटी से तमाम उम्र झेलता है !
पर यही रोटी
इन्सान को भगवान बनती है
यही रोटी शैतान को इन्सान बनाती है
यही रोटी इन्सान को हैवान बनाती है
पूरी सृष्टि रोटी में समायी है
कन्हैया को भी नाच नचाई है
पर रोटी में बसता
दिल अपना और प्रीत पराई है
रोटी से तो कुत्तो में भी लड़ाई है
पर वफ़ादारी उसने दिखाई है
और आदमी ने हमेशा पीठ दिखाई है
अब आदमी और कुत्ता में
सम्मान की लड़ाई है
योगी नजर ने हमेशा
कुत्ते की जीत पाई है
कुत्ते और आदमी में
अभी बहुत दूर है आदमी
कुत्तों की वफ़ादारी से ईमानदारी से !
ईमानदार नहीं तो कुत्तों सा
वफादार बनिए इन्सान बनिये
शर्म हो तो इन कुत्तों से कुछ सीखिए !

यह कविता क्यों ? आदमी वह है जो खुद सोचे की वह कहाँ है ? रोटी खाने और खिलाने के फर्क को समझिये !
यह कविता भारतीय कूटनीति राजनीती के पुरोधा अन्ना हजारे जी को ह्रदय से समर्पित अरविन्द योगी १२/०४/२०११

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