कुत्ता और आदमी
एक आदमी रोटी बनाता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक आदमी रोटी से खेलता है
एक आदमी रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी सेकता है
और एक आदमी रोटी से तमाम उम्र झेलता है !
पर यही रोटी
इन्सान को भगवान बनती है
यही रोटी शैतान को इन्सान बनाती है
यही रोटी इन्सान को हैवान बनाती है
पूरी सृष्टि रोटी में समायी है
कन्हैया को भी नाच नचाई है
पर रोटी में बसता
दिल अपना और प्रीत पराई है
रोटी से तो कुत्तो में भी लड़ाई है
पर वफ़ादारी उसने दिखाई है
और आदमी ने हमेशा पीठ दिखाई है
अब आदमी और कुत्ता में
सम्मान की लड़ाई है
योगी नजर ने हमेशा
कुत्ते की जीत पाई है
कुत्ते और आदमी में
अभी बहुत दूर है आदमी
कुत्तों की वफ़ादारी से ईमानदारी से !
ईमानदार नहीं तो कुत्तों सा
वफादार बनिए इन्सान बनिये
शर्म हो तो इन कुत्तों से कुछ सीखिए !
यह कविता क्यों ? आदमी वह है जो खुद सोचे की वह कहाँ है ? रोटी खाने और खिलाने के फर्क को समझिये !
यह कविता भारतीय कूटनीति राजनीती के पुरोधा अन्ना हजारे जी को ह्रदय से समर्पित अरविन्द योगी १२/०४/२०११
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