Monday 11 April 2011

गुलदस्ते का गुलाब

गुलदस्ते का गुलाब
गुलदस्ते में रखा गुलाब
कह रहा आपनी बीती कहानी
कभी मुस्कराता सुबह
कभी दर्द भरी खामोश शाम
कभी मस्त हवाओं का झोंका
कभी उजड़े बहारों का ख्वाब
सूखे डाली की पत्तियां
अरमानो से सजी अधखिली कलियाँ
कभी शुलों का दामन
कभी माली का अपनापन
सब छुट जाता है
जब कोई कली गुलाब बनता है
टूटकर डाली से
बाजार में बिकता है
और प्रेमहार बन
कभी प्रेमिका को रिझाता है
या स्राधासुमन बन
कभी पार्थिव तन को सजाता है
लेकिन हरपल मुस्कराता है
कभी ज़िन्दगी की किताब में
एक पन्ने में सुखकर
बीते वक़्त की याद बन जाता है
कभी बाजार में बिककर
नए दिलों में नए ख्वाब सजाता है
कितनी अजीब दास्ताँ है
शूलों के बादशाह की
ज़िन्दगी के हर पल को
मुस्कराकर जीता है
दिल में हो दर्द
लेकिन ख़ुशी के जाम पीता है
खुद रोकर भी
मुस्कराने की वजह देता है
शायद जीना इसी का नाम है
जो शूलों में छिपा गुलाब हिया
ज़िन्दगी के गुलदस्ते की
कभी पूरी तो कभी अधूरी
फिर भी एक हसीं ख्वाब है
गुलदस्ते में रखा योगी ने गुलाब है
ओंन दरोज डे अरविन्द योगी 

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