क्या भारत यूँ ही गणतंत्रता मनायेगा ?
एक छोटा सा नन्हा सा बच्चा
उम्र का बिलकुल कच्चा
हृदय का बिलकुल सच्चा
हाँथ में लिए देश का झंडा
किसी तरह नन्हे हांथो से
पकडे हुए कर्तव्य का डंडा
कर्म पथ पे पड़ा हुआ है !
बचपन से ही रोटी से
इस कदर जुदा हुआ है
तन मन गरीबी से जुड़ा हुआ है
बाप मदिरालय में, माँ शिवालय में
बहन कुछ बड़ी है जो
दुसरो का बर्तन मांजती है
हर पल सहारे का मुह ताकती है!
देश के संविधान में
ऊँचे आसमान में तिरंगा लहरेगा
कुछ सुविचार और सुन्दर भाषण
देश को समर्पित करेंगे हम
देश भक्ति अर्पित करेंगे हम
पर तिरंगा जिस जमीन पे खड़ा होगा
क्या वो मजबूत होगा ?
इस बचपन को रुलाते हुए
भूखे पेट जाने कितनो को सुलाते हुए
ये देश हर गणतंत्रता मनायेगा
अपनी झूठी शान दिखायेगा
और भारत का बचपन
यूँ ही भूखे पेट सो जायेगा
गर ये बचपन पेट के लिए
अपने देश का तिरंगा नही बेच पायेगा !
क्या भारत यूँ ही गणतंत्रता मनायेगा ?
आइये आगे बढे कुछ देश हित में करे
भारत का झंडा इन नन्हे से फहरावाएं
देश के इस भटकते बचपन को
सुन्दर भविष्य की दिशा दिखाएँ
योगी भारत का दुर्योग भगाएं?
यह कविता क्यों ? आज जब गणतंत्रता मनाये तो सोचें कि देश कहाँ है? इन गंदे राजनेताओं को इनके गंदे हांथो से तिरंगे को ना छूने दिया जाये बल्कि भारत के वीर सपूत बचपन जो पुरे वर्ष में बहादुरी का कार्य किये हों उन्हें देश का तिरंगा फहराने का अवसर दिया जाये जिससे भारत का बचपन तो जगता रहेगा! आप सोये या जागें पर आने वाला भारत का समाज जरूर जागेगा जय भारत ! अरविन्द योगी
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment