Saturday 26 March 2011

मानव में मानवपन भर दे

पूर्ण मानव कर दे
मै नहीं चाहता हे प्रभो !
तुम मुझपर असीम करुना कर दो
या रत्न राशी बहुमूल्य धातुओ से मेरा घर भर दो
मै तो कष्टों का आदि हूँ
जितना दोगे सब सह लूँगा
जिस देश वेश या हालत में
चाहोगे रह लूँगा
जाने या अनजाने में
मत कभी सहारा देना तुम
मेरी नैया डगमग हो तो
उसको भी मत खेना तुम
झेलूँगा संकट अनेक
तूफानों से खेलूंगा
धीरे धीरे अपनी नैया
खुद ही खे लूँगा मै
बस एक निवेदन है योगी
मानव में मानवपन भर दे
कुछ और नहीं
सिर्फ उसे पूर्ण मानव कर दे
सिर्फ उसे पूर्ण मानव कर दे !

यह कविता क्यों ? गर मानव में मानवता रहे तो ये धरती ही स्वर्ग है जिस स्वर्ग की महिमा के लिए भगवान भी मनुष्य का जन्म लेते है ! हर मनुष्य स्वयं में अनंत है जिसकी महिमा भी अपार है !
अरविन्द योगी

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