Saturday, 26 March 2011

जो रो कर जग में आता है

कल्पनाओ के मंदिर में
सपनो का पुजारी
भावनाओ के कोमल पंखुड़ियों से
उम्मीदों के फूल खिलाता है
कोई भला क्या समझ सकता है
एक कवि हकीकत के धरातल पर
न जाने कितने कष्ट उठता है
पर अपनी आंसुओ में डूबी
गहरी मुस्कराहट से जाने कितनो को हँसता है
जो सामने तो मुस्कराता है
पर तन्हाई में आंसू बहाता है
कहाँ कोई कवि के ह्रदय की वेदना को
संवेदना दे पाता है
क्यों कोई कवि पागल कहलाता है
जो भावनाओ का बादल बन जाता है
वही कवि और कविता को समझ पाता है
हर कोई इतिहास दुहराता है
हर युग में कवि
समाज का दर्पण बन जाता है
जीवन का समर्पण कहलाता है
जो रो कर जग में आता है
पर हँसता हुआ योगी बन जाता है

                अरविन्द योगी

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