Saturday 26 March 2011

सजने लगी सपनो की बारात

अनोखी रात
सजने लगी सपनो की बारात
बढ़ने लगी अपनों की तादात
कहने लगी जिंदगी कुछ खाश
आने लगी अनोखी रात !
ढक गए शबनम से पात
कह गए हमदम से बात
सह गए हम तन्हा रात
रह गए हमदम से बात
ना आई अबतक अनोखी रात !
जिंदगी साधना का योग है
कल्पना का प्रयोग है स्नेह का वियोग है
स्वप्न का संयोग है
कभी तो आएगी अनोखी रात !
एक अवनि एक अम्बर
एक ही तल सबका बल
कल कल में बीते पल
फिर ना आये बीता पल
गुजर जाए जो जीवन का पल
तनहा योगी है अनोखी रात
यह कविता क्यों ? आने वाला पल सुन्दर होगा यह सोचना छोड़ इस पल को जिए क्योकि ये पल फिर नहीं आएगा जो इस पल को जी सकता है वही आने वाले पल में भी खुश रह सकता है! अरविन्द योगी

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