Saturday 26 March 2011

मै कोई ख्वाब नहीं

मै कोई ख्वाब नहीं
जो टूटकर बिखर जाऊंगा
मै तो वो हकीकत का आइना हूँ
जो हर नजर और नजरो में नजर आऊंगा
मै कोई प्रेमी नहीं जो किसी के प्यार में
खुद को मिटाऊंगा
मै तो प्यार की घटा हूँ
जो जीवन आँगन में बरस जाऊँगा
मै कोई कहानी नहीं
जो सिर्फ किताबो में छप जाऊंगा
मै वो वर्तमान हूँ जो
सुनहले भविष्य की राह बनाऊंगा
मै वो फूल नहीं जो बाज़ार में बिक जाऊंगा
मै वो कली हूँ जो जीवन बगिया महकाऊंगा
मै कोई आंसू का बूँद नहीं
जो आँखों से टपक जाऊँगा
मै वो आँखे हूँ जो आंसुओ को भी
ख़ुशी का तरन्नुम बनाऊंगा
मै कीचड में खिला वो अरविन्द हूँ
जो धरती को स्वर्ग बनाऊंगा
मुझे याद करोगे दुनिया वालो
जब तुमसे दूर बहुत दूर चला जाऊंगा
मै कोई नदिया की धार नहीं
जो सागर में खो जाऊंगा
मै वो किनारा हूँ
जो जीवन नदिया सा बहता जाऊँगा
मै वो कलमकार नहीं
जो वक़्त के हांथो बिक जाऊंगा
मै वो कास्तकार हूँ
जो काले अक्षरों में रोशनी की बात लिख जाऊंगा
मै कोई पत्थर की मूरत नहीं
मै कोई रेत का महल नहीं
जो तूफ़ान में ढह जाऊंगा
मै मजबूत इरादों का वो चट्टान हूँ
जो हरपल तूफ़ान से तकराऊंगा
मै वो आशिक नहीं
जो किसी शोख की जुल्फों में खो जाऊँगा
मै वो जुल्फकार हूँ
जो वक्क्त की जुल्फों को भी सुलझाऊंगा
मै कोई चिंगारी नहीं
जो किसी चिता को जलाऊंगा
मै तो वो आग हूँ
जो मुर्दों को जीना सिखाऊंगा
मै कोई दर्द नहीं
जो किसी के दिल को जलाऊंगा
मै तो वो याद हूँ
जो ना दिल से जाऊँगा और ना दिल का हो पाउँगा
मै दर्देदिल अरविन्द हूँ दर्द ही मेरी पहचान है
सच कहूं तो दर्द ही अरविन्द ही दर्द की जान है
पर ज़िन्दगी की आखिरी बारात में भी
जग से हँसता हुआ जाऊंगा
पर धरती को स्वर्ग बनाऊंगा
क्योकि मै अरविन्द हूँ !
                                                मै अरविन्द हूँ !

यह कविता क्यों ? मै अरविन्द हूँ क्योकि मै कीचड में खिला हूँ फिर भी ब्रम्ह के शीश पर शोभायमान हूँ मै छोटा सा इन्सान हूँ पर इन्सान में भी भगवन को देखता हूँ खुद के लिए दर्द पर सबकी ख़ुशी की महत्वाकांक्षा है मेरी
अरविन्द योगी

No comments:

Post a Comment