Saturday 26 March 2011

माँ शारदे की वरद पुत्री मै वीणा हूँ

सरगम से निकली संगीत की साज
ह्रदय से निकली बुलंद आवाज
मदुह्रातम राग और रागनिया
जब वीणा सुरों पर छेड़ती है
कुछ इस कदर आबोहवा पर
फ़िदा हो जाती है ज़िन्दगी
चंचल तितलियों की तरह
हवा से बातें कर
सरहद की दीवार फ़ना हो जाती है
वीणा के तरकश में न जाने कितने ही तीर होते है
जो हर साज पे झंकृत होते है
भले संगीतकार फ़कीर होते है
पर वीणा के संगीत को
ना कोई देश ना कोई वेश
या कोई कल्पना विशेष
या राग विद्वेष चाहिए
मस्त हवाओं की आवाज है वीणा
वीणा को बस साज चाहिए
मन के हवाओं को बस
एक आगाज चाहिए
मै सरगम के साज से उपजी
माँ शारदे की वरद पुत्री
मै वीणा हूँ मै वीणा हूँ

श्रीदे समर्पित वीणा श्रीवास्तव जी
अरविन्द योगी @

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