Saturday 26 March 2011

वो समझ नहीं पाते

हम कह नहीं पाते
वो समझ नहीं पाते
न जाने क्या है
उनके इरादे ,
हमें तो याद है अपने वादे,
अपने पन की वो मीठी सी बाते ,
वो एहसासों की सौगाते ,
वो कह नहीं पाते
हम समझ नहीं पाते
अब भी उनकी आखों में मोहब्बत है
मेरे खुदा की मुझ पे रहमत है
अपने प्यार से जब दुनिया भी सहमत है
फिर कैसी ये उलझन है
क्यों बढती दिल की धरकन है
तुम कहो न कहो, मेरा दिल समझता ,
ग़र तुम नफरत करो
फिर क्यों बिन मेरे जलता है
अब तो समझो (योगी)
आपका दिल भी कुछ कहता है !

यह कविता क्यों ? प्यार को शब्द नहीं होते और प्यार निःशब्द फिर भी खुद में एक शब्द है !

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