Saturday 26 March 2011

मै तो एक पागल कवि हूँ

क्या फर्क पड़ता है
मै तो एक पागल कवि हूँ
तम को काटता रवि हूँ
कौन किसलिए जीता है
कौन किसलिए पीता है
ज़िन्दगी तो सीता है
कर्मो की गीता है
भाग्य विपरीता है
यहाँ तो हर कोई
बस अपने लिए जीता है
मै तो राम की सीता हूँ
गीतों की गीता हूँ
पर मै तो एक पागल कवि हूँ !------------
मस्जिद का मौलवी
मंदिर का पुजारी हूँ
भाग्य का भिखारी हूँ
ना कोई अधिकार मेरा
कर्तव्य है संसार मेरा
जीवन है उपहार मेरा
अभिन्दन है प्यार तेरा
पर मै तो एक पागल कवि हूँ
तम को काटता रवि हूँ
मै तो एक कवि हूँ !

यह कविता क्यों ? मुझे प्रसन्नता है की मै एक कवि हूँ कम से कम समाज में दर्पण लिए फिरता हूँ
अरविन्द योगी

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