बारिश के बूंदों में डूबा मन
चन्दन से शीतल हुआ तन
शिवमय हो बहती चंचल पवन
भावनामय हो जलती हवन
धन्य हो जाये जहाँ जीवन
धन्य हो जाये जहाँ मरण
आज सावन आया है
उस बनाराश की शरण !
बारिश की बूंदों में डूबता कण-कण
योगी बन काशी में घूमता तन-मन
गंगा की लहर भाव की भंवर
उगते सूरज का शहर ,मंदिरों का नगर
आज बादलों की जद में है, सावन की हद में है
जहाँ सूरज भी डूबता है चाँद भी उगता है
ह्रदय से हँसता हर मन दिखता है
जहाँ हर भाव दिखता है बिकता है
भावना की हर रात में भक्ति की हर बात में
सावन में जब बनारस डूबता है !
जिसे सृष्टि का कण कण पूजता है
ऐसा है मन भावन बनारस का सावन !
पंक्ति में खड़ी भक्ति है जिसमे शिव शक्ति है
मस्ती में डूबी हर बस्ती है भावना भी सस्ती है
चली फिर आज सावन की कश्ती है
सस्ती से सस्ती है मस्ती से मस्ती है
शिव को समर्पित सावन की भक्ति है
शक्ति को अर्पित सावन की मस्ती है
आज उगते सूरज के शहर में
आज सावन की मस्ती है !
यह कविता क्यों ? बड़ा ही मनभावन है बनारस का सावन जहाँ कण कण शिवमय हो जाता है रसमय हो जाता है शाशिमय हो जाता है सब रसमय हो जाता है जब बनारस में सावन आता है !
अरविन्द योगी
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