जिसे दुनिया भुला ना पायेगी !
दौलत से तू प्यार न कर ये साथ ना तेरे जाएगी
प्यार करे तो इन्सान से कर जिसे दुनिया भुला न पायेगी !
स्वार्थ में अँधा हो तुने कितनो को सुलाया है
महल बनके अपनों के कितनो के घर जलाया है
मजे में अपने मगन रहा सुख दुःख ना औरो का जाना
इंसानों के कर्म है क्या ये तुने ना कभी पहचाना है
दुनिया को दुःख देने वाले मौत तुझे भी आएगी
प्यार करे तो इन्सान से कर जिसे दुनिया भुला न पायेगी !
जिनको तू कहता अपना-अपना,साथ ना वो तेरा देंगे
छीनके तेरी दौलत सारी दो ही गज कफ़न देंगे
तेरे बनाये महलो में तुझको ना ठहराएंगे
मौत तेरी आते ही तुझको जल्द से जल्द जलाएंगे
हँसता है तू जिन आँखों में बस दो पल को आंसू बहायेंगे
प्यार करे तो इन्सान से कर जिसे दुनिया भुला ना पायेगी !
यह कविता क्यों ? इन्सान का कर्म और धर्म सिर्फ प्यार पाना और देना है बस यही एक नेमत है जो जाने के बाद भी याद आती है बाकि सब माटी शरीर के साथ ख़त्म हो जाता है ! अरविन्द योगी १२/०५/२०११
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1 comment:
Very impressive Lines....
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